'डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' के निर्देशक किससे हैं खफा, पढ़िए उनके खास इंटरव्यू में
रंग लाई मेहनत
फाइनली दिबाकर बनर्जी की मेहनत कामयाब होती नजर आ रही है. कड़ी मेहनत से बनाई उनकी फिल्म 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' को दर्शकों का सकारात्मक रिस्पॉन्स मिला. दिबाकर ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि वह इस फिल्म को पूर्ण सजीवता के नजरिए से देख रहे हैं. उनका कहना है कि दर्शकों को फिल्म की असली कीमत छह महीने बाद मालूम पड़ेगी. वह कहते हैं कि वह झूठ नहीं बोलते. न ही दिखावा करते हैं और न तो दिखावे की चीज बनाते हैं. फिल्ममेकर दिबाकर कहते हैं कि उनकी फिल्म ज्यादातर शुरुआत में ही दर्शकों से अपना मजबूत जुड़ाव बैठा लेती है. उदाहरण के तौर पर 'ओए लक्की, लक्की ओए' और 'शांघाई'. इसके बावजूद अभी भी कुछ ऐसे दर्शक हैं जो उनसे परिचित होकर भी अभी भी अपरिचित हैं.
हॉलीवुड फिल्मों से तुलना अच्छे संकेत नहीं
फिल्म 'डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी' को बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड फिल्म 'Furious 7' ने कड़ी टक्कर दी. इस बारे में पूछने पर दिबाकर कहते हैं कि भारतीय सिनेमा के लिए यह अच्छे संकेत नहीं हैं. हॉलीवुड फिल्म ने हमें कड़ी टक्कर दी. ये इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि विदेशी फिल्मों के आगे बॉलीवुड फिल्में बहुत जल्द अपनी जमीन छोड़ देती हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हम सब यूरोपियन कल्चर में ही ढल जाएंगे.
लंबे समय से हैं कायम
इस बात का कोई कारण नहीं है कि वह बॉलीवुड में कायम क्यों रहेंगे. दिबाकर कहते हैं कि वह बॉलीवुड में कायम इसलिए रहेंगे क्योंकि वह दर्शक क्रिएट करते हैं. आज 'ब्योमकेश बक्शी' इसीलिए बन पाए हैं, क्योंकि इससे पहले 'खोसला का घोसला', 'लव सेक्स और धोखा', 'शांघाई', 'देव-डी', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर', 'पीपली लाइव' और 'कहानी' जैसी फिल्में अस्तित्व में आईं. इन सभी फिल्मों ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया.
आज के सांचे में ढली ये है पारिवारिक फिल्म
दिबाकर कहते हैं कि ये एक पारिवारिक फिल्म्ा है. ये एक ऐसी फिल्म है जिसे बच्चों के साथ बैठकर भी देखा जा सकता है. कुछ नई जेनेरेशन के लोग इस हफ्ते फिल्म को देखने जा रहे हैं और उन्हें उनका रिएक्शन जानना होगा. वह बताते हैं कि फिल्म को लेकर दर्शकों का रिस्पॉन्स जानने के लिए वह थिएटर तक में गए और दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर काफी खुश हो गए. उन्होंने आज के दौर का मसाला मिलाते हुए एक पारिवारिक फिल्म बनाई है. दिबाकर बनर्जी ने प्रसिद्ध बंगाली लेखक सारादिंबु बंदोपाद्यायाय की रचना से फिल्म के लिए टॉपिक को उठाया और उसे आज के नए मसाले भरे तड़के के साथ एक्टर सुशांत सिंह राजपूत पर फिल्माया. वह इस बात को स्वीकार करते हैं कि ब्योमकेश को आज के दौर के हिसाब से पर्दे पर उतारना वाकई बड़ा रिस्क था.
सीक्वल की है तैयारी
उन्होंने कहा कि ये वाकई एक जुआं था, लेकिन उन्होंने इसे खेला. आज के दर्शकों का टेस्ट बदल गया है. ऐसे में सफल होना तभी संभव है जब उन्हें कुछ नया दिखाने की कोशिश करेंगे. वह अपनी पहली फिल्म 'खोसला का घोसला' से इसी कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश कर रहे हैं. इस फिल्म को लेकर कोलकाता में सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों की चरम प्रतिक्रिया रही, बाकी 90 प्रतिशत लोगों ने इसे इंज्वाय किया. दिबाकर बनर्जी ने सारादिंबु की 30 कहानियों के राइट्स को ले लिया है. अब वो तैयारी कर रहे हैं इसके एक के बाद एक सीक्वल की. इसके आगे की कहानी को वो खुद ब्योमकेश की किस्मत पर छोड़ते हैं. वह कहते हैं कि वह इस बारे में यकीनन सोच रहे हैं, लेकिन इस बारे में उन्हें यह भी सोचना होगा कि आखिर इसके लिए मुमकिन समय कब होगा और किस तरह से होगा.
काफी महंगी बैठती हैं पीरियड फिल्म
दिबाकर कहते हैं कि फिल्म के लिए एक पीरियड की सेटिंग करने और उस तरह की लोकेशन में सीन्स को ढालने, जिस तरह का कलकत्ता 1940 में था. इन सबमें गुथी परफेक्ट बॉलीवुड मूवी को बनाने में बजट भी अच्छा खासा आता है. किसी भी एक टिपिकल हिंदी मूवी से ये कहीं ज्यादा महंगा पड़ता है. इसी के चलते वह फिल्म के ज्यादा पोस्टर्स रिलीज नहीं कर पाए, न तो डिजिटल मीडिया पर सही से उसका प्रमोशन कर पाए. इसके बाद भी फिल्म को लेकर काफी अच्छे रिव्यू मिले हैं.
Courtesy By Mid-Day