गुजरात में विधवा ने किया बेटी का कन्यादान
बेटे की शादी में नहीं कर पाई थी काम
बेटी की शादी में असली काम किसका होता है, यह सिर्फ एक पिता ही जान सकता है। जो अपनी बेटी का कन्यादान करता है। लेकिन इस परंपरा को तोड़ा है गुजरात की एक महिला ने। दनिबेन मकवाना गुजरात से हैं और 30 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने पति को खो दिया था। दनिबेन के तीन बेटों की शादी पहले ही हो चुकी है। लेकिन महिला को उनकी जाति के लोगों ने उन्हें किसी भी मांगलिक काम में हिस्सा लेने से मना कर दिया। बेटे की शादी में रही अधूरी इच्छा को दनिबेन ने अब पूरा कर लिया। उन्होंने बेटी की शादी में उन्होंने सालों से चली आ रही इस दकियानूसी प्रथा को अंत करने का पहला मजबूत कदम उठाया। इसके लिए वो ख़ुद भी तैयार नहीं थीं, पर बाद में उन्होंने बेटी का कन्यादान करने का फैसला किया।
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विधवाओं को समाज मे मिले पूरा हक
दनिबेन की इस ख्वाहिश को पूरा करने में एक एनजीओ ने भी मदद की। वीडियो वॉलेंटियर नाम की यह संस्था विधवाओं को समाज में बराबरी का हक और सम्मान दिलाने की कोशिश कर रही है। ये संस्था अपने कैंपेन 'खेल बदल' के जरिए समाज में व्याप्त एक ही जेंडर के आधिपत्य को हटाने की कोशिश कर रही है। इस कैंपेन को चलाने वाली यशोधरा साल्वे का कहना है कि ध्रान्गढ़रा में कम से कम 45 विधवाएं हैं और ये सभी आर्थिक और सामाजिक रूप से किसी न किसी पर निर्भर हैं। इन्हें सामाजिक बहिष्कार का शिकार सिर्फ इसलिए होना पड़ता है क्योंकि ये विधवा हैं। हमारी कोशिश इन्हें समाज की मुख्यधारा में लेकर आने की है और लोगों के दिमाग से एक विधवा के प्रति गलत सोच को हटाने की भी।
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