आपका 'शक' जिनका घर चलाता है
लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिनकी रोज़ी रोटी ही शक पर चलती है.पति-पत्नी का एक दूसरे पर शक करना, मां-बाप का बच्चों पर शक करना, बॉस का अपने मातहत पर शक करना. इस शक ने जन्म दिया जासूसी उद्योग को और इनसे पैसा कमाने का मौक़ा मिला जासूसों को.शक का दायरा जैसे-जैसे बढ़ने लगा इन जासूसों की दुनिया भी फलने फूलने लगी.शक़ एक उद्योग
वैसे इनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री भी है लेकिन लोगों की ज़िंदगी में चुपके-चुपके झांकने का इन्हें कुछ ऐसा जुनून सवार हुआ कि ये 14 साल से जासूसी का धंधा ही कर रहे हैं.शक़ एक उद्योग?राज का मानना है कि शक वाक़ई एक उद्योग है.
राज कहते हैं, "अगर शक है तो हम हैं अगर शक नहीं तो कोई कैसे जासूस बनेगा. किसी भी गुनाह के साथ शक का जुड़ना ज़रूरी है. अगर शक ना हो तो कोई केस हल ही नहीं हो पाएगा."राज के पास किस तरह के केस सबसे ज़्यादा आते हैं?पति-पत्नी का 'शक'
राज बताते हैं कि वो एक सॉफ्टवेयर की मदद भी लेते हैं जो उन्हें उनके शिकार, यानी जिसका पीछा कर रहे हैं, उनकी लोकेशन, उसे किसके फ़ोन आ रहे हैं, किसके एसएमएस आ रहे हैं, सब कुछ ट्रैक किया जा सकता है. राज ने बताया कि वो हर केस का 30 से 35 हज़ार रुपए तक लेते हैं.मेरी इस मुलाक़ात के दौरान राज लगातार वाट्सऐप के ज़रिये अपने मुवक्किलों से लगातार संपर्क में थे.राज ने बताया कि एक वक़्त था जब उनके पास पैसों की ज़बरदस्त तंगी थी, तब उनकी पत्नी ने घर चलाया लेकिन अब जासूसी के काम ने उन्हें भरपूर पैसा दिया और वो अपनी आर्थिक स्थिति से बड़े ख़ुश हैं.