उत्तराखंडः लोगों के लिए और दूर हो गया देहरादून
“मुक्क अस्मानकु द्यख्णू छोडाबिराणा पिछाडि भगणू छोडाउत्तराखंड अब सांस चा तुमारोसांस हैका मा मग्णू छोडा...”एक आम पहाड़ी की नज़र से देखा जाए तो ये एक प्रार्थना थी. आज जब उत्तराखंड को बने 14 साल हो गए हैं तो हर किसी के मन में एक ही सवाल है कि, ‘पहाड़ की तक़दीर कितनी बदली.’ लोग यहां तक सोच रहे हैं कि उत्तराखंड का गठन पहाड़ के लिए अच्छा हुआ या बुरा.ये सही है कि पहाड़ की अपनी सरकार है, मुख्यमंत्री है, राजधानी है, लंबा चौड़ा अधिकारी और कर्मचारी तंत्र है, सत्ता के गलियारों में गढ़वाली और कुमाऊंनी बोली सुनाई दे जाती है, लेकिन इस सब में एक आम आदमी के लिए क्या है, ये एक कठिन सवाल है.
उत्तराखंड के मूल निवासी, कवि और पत्रकार मंगलेश डबराल कहते हैं, “उत्तराखंड के एक अलग राज्य बन जाने से पहली दुर्घटना ये हुई है कि वो ‘पर्वतीय राज्य’ नहीं रह गया है. जनसंख्या आधारित नए परिसीमन ने पहाड़ी क्षेत्र की अस्मिता पूरी तरह ही नष्ट कर दी है.”'पहले जैसी स्थिति'
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए डबराल कहते हैं, “पहाड़ी इलाकों से उत्तराखंड के तराई क्षेत्र या उधमसिंह नगर और हरिद्वार जैसे दो अनचाहे मैदानी ज़िलों में जो पलायन हुआ है, उसने एक तरफ़ तो गांवों को जनसंख्याविहीन किया है, वहीं दूसरी तरफ इन जगहों का जनसंख्या घनत्व बढ़ाया है.”
लेकिन देहरादून और दूर हो गया है. पहाड़ का आदमी जब कोई काम लेकर लखनऊ जाता था तो उससे सहानुभूति होती थी. वहीं देहरादून में आकर सुदूर पिथौरागढ़ या चंपावत से आया पहाड़ी घिस-घिस कर रह जाता है लेकिन उसका काम नहीं होता.योजना आयोग ने साल 2032 तक उत्तराखंड से 132,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है. राज्य के गठन के समय प्रदेश की बिजली खपत 90 लाख यूनिट प्रति दिन थी जो 10 सालों में 280 लाख यूनिट तक पहुंच गई.'औपनिवेशिक लूटखसोट का ढांचा'
ब्यूरोक्रेसीअगर हम आकंड़े देखेंगे तो सरकारें अपनी पीठ थपथपाने के कई तथ्य जुटा ही लेंगी और नोबल पुरस्कार तक के दावे होते दिखेंगे, लेकिन सच्चाई से मुंह कैसे मोड़ा जा सकता है?
ध्यान देने वाली बात है कि पहले उत्तराखण्ड में एमएलए और एमएलसी को मिला कर कुल 30 जनप्रतिनिधि होते थे और अब 70 हो गए हैं. सभा सचिव जैसे संविधानेतर पद निकाले गए हैं.विधायकों के भत्ते ख़ूब बढ़े"उत्तराखंड में सरकार चाहे किसी भी राजनैतिक दल की बने, उसकी नीतियां औपनिवेशिक लूटखसोट के ढांचे पर ही अब तक टिकी हैं."-सुषमा नैथानी, वनस्पति विज्ञानी और कविउत्तराखंड में विधायकों के वेतन भत्ते ख़ूब बढ़ गए हैं. यही नहीं जो विधायक निधि कभी 75 लाख थी, वो तीन करोड़ हो गई और अब संभवतः पांच करोड़ तक होने जा रही है.जयसिंह रावत कहते हैं, “सरकार जब लखनऊ से देहरादून पहुंची तो अपने साथ वह औपनिशिक सोच भी ले आई. यहां आज भी पंचायती राज जैसे लगभग 300 क़ानून उत्तर प्रदेश के चल रहे हैं. यही नहीं कार्य संस्कृति के सारे दोष विरासत में उत्तराखंड आ गए हैं.”उत्तराखंड में 40 हज़ार से ज़्यादा एनजीओ हैं.राज्य में 98 जल विद्युत परियोजनाएं चालू हैं और 111 निर्माणाधीन हैं. वर्तमान कार्यरत परियोजनाओं की कुल स्थापना क्षमता 3600 मेगावाट है. 21,213 मेगावाट क्षमता की 200 परियोजनाएं विचाराधीन हैं. ये उत्तराखंड जलविद्युत निगम के आंकड़े हैं.