पाकिस्तान: सेक्स एजुकेशन पर फिर बहस तेज़
सरकार के इस क़दम से पाकिस्तान में एक बार फिर ये बहस तेज़ हो गई है कि बच्चों को किस उम्र से और किस तरह सेक्स एजूकेशन यानी यौन शिक्षा दी जानी चाहिए.दरअसल एक टीवी चैनल के एंकर ने एक स्कूल को निशाना बनाते हुए कहा कि वहां छठी कक्षा की किताबों में बच्चों को प्रजनन के बारे में बताया जा रहा है.पंजाब सरकार के शिक्षा विभाग ने इसका संज्ञान लेते हुए एक कमेटी बना दी. पंजाब के शिक्षा मंत्री राना मशहूद ने बीबीसी को बताया कि अभिभावकों की शिकायत की वजह से उन्होंने छठी कक्षा की जीव विज्ञान की किताब से प्रजजन संबंधी अध्याय को निकलवा दिया है.
उन्होंने कहा, “बच्चों को इस बारे में जागरूक ज़रूर किया जाना चाहिए लेकिन पंजाब सरकार और मशहूर शिक्षाविदों का विचार है कि इतनी कम उम्र के बच्चों को इतना ज़्यादा विस्तार से बताने पर उन पर इसका ग़लत असर पड़ेगा.”उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद सभी निजी स्कूलों की किताबों से इस अध्याय को निकाल दिया गया है.जागरूकता की कमी"अंग्रेज़ी में तो हम कह देते हैं – सेक्स, सेक्स, सेक्स. लेकिन जब इस बात को अपनी ज़ुबान में कहते हैं तो लगता है कि कोई ग़लत बात कर रहे हैं."-नाज़ो पीरज़ादा, सामाजिक कार्यकर्ता
पूर्व सांसद और सामाजिक कार्यकर्ता शहज़ाद वज़ीर अली का कहना है कि पाठ्यक्रम की निगरानी करना सरकार का अधिकार है, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं है कि बच्चों को प्रजनन और उससे जुड़े स्वास्थय संबंधी विषयों के बारे में बताया जाना चाहिए.वो कहते हैं, “इस पर समय-समय पर बहस होती है कि हमारे समाज और धर्म के हिसाब से पाठ्यक्रम में किस उम्र के बच्चों को ये बातें बताई जानी चाहिए. बाक़ी दुनिया में देखें तो समझा जाता है कि 15 और 16 साल के बच्चों को इस बारे में ज़रूर बताया जाना चाहिए.”सिंध प्रांत में यौन संबंधी विषयों पर पिछले 16 वर्ष से काम कर रही नाज़ो पीरज़ादा कहती हैं कि इस बारे में पाकिस्तान में जागरूकता की बहुत कमी है.उनका कहना है, “अंग्रेज़ी में तो हम कह देते हैं – सेक्स, सेक्स, सेक्स. लेकिन जब इस बात को अपनी ज़ुबान में कहते हैं तो लगता है कि कोई ग़लत बात कर रहे हैं. लेकिन सेक्स या लिंग तो हमारी प्राकृतिक पहचान है. हम अपनी पहचान के बारे में क्यों बात नहीं करना चाहते हैं, इसकी हिफ़ाज़त क्यों नहीं करना चाहते हैं.”
पश्चिमी देशों में सेक्स एजुकेशन को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा हैउधर नाज़ो पीरज़ादा कहती हैं कि अपना शैक्षिक कार्यक्रम शुरू करने से पहले वो बच्चों के माता-पिता से बात करती हैं. इससे उन्हें पता चल जाता है कि माता-पिता को ख़ुद अपने बच्चों को सेक्स और शारीरिक बदलावों के बारे में बताना मुश्किल लगता है.सेक्स को पाकिस्तान में गंदा और अश्लील शब्द माना जाता है, इसलिए इन गिने-चुने संगठनों पर आरोप लगाया जाता है कि वो बच्चों को गुमराह कर रहे हैं.बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था 'स्पार्क' के अनुसार साल 2012 में तीन हज़ार आठ सौ बच्चे यौन शोषण का शिकार हुए.चाहे माता-पिता की ज़िम्मेदारी हो या स्कूल की, लेकिन अगर इस बच्चों को अपने अधिकारों और अपनी सुरक्षा करने के बारे में जागरूक किया गया होता तो ये आंकड़ा कहीं कम होता.