डियर माया रिव्यू: दोस्ती और प्यार के फलसफे सिखाती ‘मनीषा की कमबैक’ खूबसूरत फिल्म
कहानी
माया देवी एक अधेड़ उम्र की औरत हैं और शिमला में अकेले रहती हैं। उनके अकेलेपन की कालिमा उनके कपड़ों और उनकी बनाई हुई गुड़ियों के कपड़ों में साफ़ दिखती है। वो सालों से अपने आप को समाज से काट कर ज़िन्दगी को बस जी रही हैं। ऐसे में एना और इरा नाम की दो लडकियां कुछ अनजानी चिट्ठियाँ लिख कर माया की ज़िन्दगी को पलट देती हैं, उसकी खुद की और उसकी बनाई हुई गुड़ियों के रंग बदल जाते हैं, और माया चिट्ठी में लिखे हुए नाम को ढूँढने के लिए अपना सब कुछ बेच कर चली जाती है। जब तक लड़कियों को अहसास होता है।।।तब तक माया जा चुकी थी। इस बात को लेकर दोनों दोस्तों की दोस्ती भी टूट जाती है।।। ६ साल बाद एना को लगता है की उसे माया को ढूँढना ही होगा और उसे सच बताना ही होगा। क्या उन्हें माया मिलती है।।।जानने के लिए ज़रूर देखिये ये फिल्म।
कास्ट: मनीषा कोइराला, श्रेया चौधरी, मदीहा इमाम
Rating: 3.5 Stars
कथा पटकथा और निर्देशन
पहले तो दाद देनी चाहिए इस फिल्म की कहानी की। ये फिल्म भी प्यार के सब्जेक्ट को लेकर बनी है पर बाकी फिल्मों की तरह इस फिल्म फिल्म में प्यार के पहलु को अलग तरह से दर्शाया गया है। प्यार किसी की ज़िन्दगी बना सकता है तो उजाड़ भी सकता है, और फिर मौका दिया जाए तो उजड़ी ज़िन्दगी में रंग भी भर सकता है। प्यार के अलग अलग पहलु इसके किरदारों में दीखते हैं। एना और इरा के लिए प्रेम किताबी और सतरंगी है वहीँ माया के लिए प्यार जीवन को जीने के लिए एक मात्र सहारा। कहानी के लिए फिल्म को फुल मार्क्स। फिल्म की पटकथा थोड़ी लचर ज़रूर है। डाइलोग बेहतर हो सकते थे और फर्स्ट हाफ कम से कम २० मिनट खीचा हुआ है। पर फिल्म वापस अपनी पटरी पर सेकंड हाफ में आ जाती है और अंत में आपको ‘प्यार और ज़िन्दगी’ के बारे में सोचने पर ज़रूर मजबूर करती है। फिल्म थोड़ी स्लो है क्योंकी फिल्म की एडिटिंग बेहतर हो सकती थी। नवोदित निर्देशिका सुनैना भटनागर ने अपना काम पूरी इमानदारी के साथ किया है और एक अच्छी फिल्म बनाई है।
Reviewed by – Saurabh Bharatwww.scriptors.in