जापान की पुलिस ऐसे खोज रही काम क्योंकि यहां अपराध हो रहा है कम
मर्डर रेट मात्र 0.3जापान में अपराध के घटते दर को लेकर अब तक कई रिपोट्र्स सामने आ चुकी है। पिछले 13 वर्षों में अपराधों की दर यहां काफी कम हो गई। अगर दो साल पहले साल 2015 के अपराध देखे जाएं तो यहां पर हत्या के मामलों का ग्राफ बेहद कम है। इस पूरे साल में देश में बस गोलीबारी का एक मात्र मामला सामने आया है। जिससे यहां पर एक लाख जनसंख्या पर मर्डर रेट मात्र 0.3 है। वहीं अगर अमेरिका में यह देखा जाए तो मर्डर रेट 4 है। अपराध काफी कम
ऐसे में साफ है कि यहां पर पुलिस वालों की संख्या जितनी ज्यादा है उतने ही यहां पर अपराध काफी कम है। यहां पर पुलिस विभाग में करीब 2.59 लाख कर्मचारी हैं। जिनकी अगर एक दशक से पहले तुलना की जाए तो ये करीब 15 हजार कर्मचारी ज्यादा है। ऐसे में साफ है कि यहां अपराध का ग्राफ गिरने से पुलिस कर्मियों के पास काम की कमी है। जिससे वे काफी एक्टिव रहते हैं और अपने लिए छोटे-छोटे मामलों के जरिए काम तलाश रहे हैं।
यहां पर ड्रग आदि लेने वालो, छेड़छाड़ करने वालों व अराजक तत्वों पर भी पुलिस पैनी नजर रखती है। जिससे लोग ऐसी हरकते करने में काफी डरते हैं। यही वजह है कि ये घटनाएं भी कम हुई है। वहीं 2015 में जापान की पुलिस ने एक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार किया था जिसका कुसूर सुनकर शायद हंसी आ जाए। पुलिस ने उस व्यक्ति को बस इसलिए गिरफ्तार किया था क्योंकि उसने प्रधानमंत्री शिंजो आबे के चेहरे पर हिटलर जैसी मूंछें लगा दी थीं।अन्याय पर नजर इतना ही नहीं जापान की पुलिस वहां बच्चों पर होने वाले अन्याय पर भी पैनी नजर रखती है। 2010 से अब तक चाइल्ड एब्यूजिंग केसेज के रेट भी कम हुए है। यहां पर जिन घरों में बच्चों के साथ अन्याय होता है। वहां पर पुलिस पैरेंट्स को सिखाती है कि वे अपने बच्चों को सही रास्ता दिखाए। पैरेंट्स अपने बच्चों को प्यार से समझाने का प्रयास करें। इसके अलावा यहां का न्यायिक सिस्टम भी काफी मजबूत होने से भी अपराध कम हो रहे हैं।
इतना ही नहीं यहां पर अपराध दर कम होने का यह भी एक बड़ा उदाहरण यह भी है। जापान में जेल जाने वाले युवाओं की संख्या भी बहुत कम है। जापान में एक लाख युवाओं में से औसतन सिर्फ 45 युवा ही जेल जाते और अमेरिका में 666 युवा जेल जाते हैं। हालांकि इसके बाद भी आपको जानकर हैरानी होगी कि अपराध की संख्या कम होने और पुलिस बल अधिक होने के बाद भी यहां पर लगभग 30 प्रतिशत मामले ही सुलझ पाते हैं।
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