भारतीय संविधान के पहले संस्करण की कॉपी एक आनलाइन ऑक्शन के दौरान नीलाम की गई। नीलामी में इस कॉपी की कीमत 48 लाख लगी।इस कॉपी की खास बात ये है कि इसमें निर्माताओं के हस्ताक्षर भी हैं।

कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। सैफ्रनआर्ट जो कि पुरानी वस्तुओं और किताबों को नीलाम करने वाली एक कंपनी है। इस कंपनी नें अपने तीन दिनों तक चले आनलाइन ऑक्शन में भारतीय संविधान के पहले संस्करण की कापी को नीलाम किया। आपको बता दें कि इस कापी में संविधान निर्माताओं के हस्ताक्षर भी हैं। नीलामी में इस कापी की कीमत 48 लाख रूपये लगाई गई। इस नीलामी में इस पुस्तक की कापी के अलावा दो और चीजों की नीलामी की गई। जिसमें से एक जेम्स बैली फ्रेजर की एक्सिक्विजिट कलेक्शन आफ कैलकटा प्रिंट्स है। इसकी कीमत नीलामी में करीब 22.80 लाख रूपये लगाई गई। इसकी खास बात ये है की इसमें गवर्नमेंट हाउस की तस्वीर है।

क्या है खास इस पुस्तक में
भारतीय संविधान की पुस्तक जिसे कला के बजाय वास्तुकला की पुस्तक माना जाता है। नीलामी में इस पुस्तक की कीमत 48 लाख रूपये लगायी गई है। यह अब तक की लगाई गई कीमतों में सबसे ऊंची कीमत है। भारतीय संविधान डा भीमराव अम्बेडकर ने लिखा था।
आपको बता दें कि ये पुस्तक देहरादून में भारतीय सर्वेक्षण कार्यालयों की तरफ से बनाई गई है। इस पुस्तक की केवल 1000 प्रतियां ही प्रकाशित की गई हैं। नीलाम की गई पुस्तक एक फोटोलिथोग्राफिक प्रति है। इसका ब्लूप्रिंट भारतीय संसद में रखा गया है।

क्या बोलीं सैफ्रनआर्ट की सह संस्थापक
सैफ्रनआर्ट की सह-संस्थापक मीनल वजीरानी ने संविधान की नीलाम की गई कापी को लेकर कहा, "अपने सौंदर्यशास्त्र के अलावा, प्रत्येक वस्तु भारत की विरासत के दस्तावेजीकरण के रूप में अत्यधिक ऐतिहासिक मूल्य रखती है। अंबेडकर की तरफ से तैयार किए गए संविधान के ब्लू प्रिंट पर 1946 की संविधान सभा के 284 सदस्यों के हाथों के निशान हैं, जिसमें लेखिका कमला चौधरी के हिंदी हस्ताक्षर और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के अंग्रेजी हस्ताक्षर भी शामिल हैं।

शीट पर कोड लिखने में लगा कितना समय
आपको बता दें कि इस शीट पर देश को नियंत्रित करने वाले कोड को लिखने में 6 महीने का समय लग गया था। इस शीट पर कोड लिखने का काम रामपुर के सुलेखक रायजादा को दिया गया था। इन्होने ही प्रिंटिंग और स्टेशनरी के नियंत्रक की तरफ से दिए गए हस्तनिर्मित मिलबोर्न पेपर की शीट पर कोड लिखा । इस कोड को लिखने में उन्हें नवंबर 1949 से अप्रैल 1950 तक 6 महीने का समय लग गया। इस काम के लिए सुलेखक को 4000 रूपये का पुरस्कार भी दिया गया था।

Posted By: Inextlive Desk