दिल्ली में लगातार 15 साल की हुकूमत करने के बाद दिल्ली विधानसभा में शून्य तक पहुंची कांग्रेस ने अपनी हार चुनाव से पहले ही मान ली थी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली के चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तक की बयानबाजी ने पार्टी की लुटिया पूरी तरह डुबो दी.

उम्मीद पर फिरा पानी
पार्टी के जानकार सूत्रों का कहना है कि जब टिकटों का वितरण होना था और प्रत्याशियों के नाम तय किए जाने थे, तभी पार्टी ने एक सर्वे कराया था और उसके परिणाम के अनुसार उसे महज दो सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी. पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने अपने स्तर पर भी अपने क्षेत्र में सर्वे कराया था और जनता का मूड भांपने की कोशिश की थी. कहा यह भी जा रहा है कि पार्टी ने काफी-सोच विचार के बाद करीब दो दर्जन उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, उन्हीं को लेकर उसे कुछ उम्मीदें थीं. ऐसा माना गया था कि पार्टी करीब एक दर्जन सीटें जीत जाएगी.
पहले ही मिल गया था संकेत
सियासी जानकारों के मुताबिक, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को पहले ही इस स्थिति का अंदेशा हो गया था और इसीलिए उन्होंने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया. लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि पूरी दिल्ली में यह संदेश चला गया कि जब पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष ही चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है तो जाहिर है कि पार्टी का मनोबल टूट चुका है. हालांकि, लवली ने यह सफाई भी दी कि वह पूरी दिल्ली में पार्टी की मजबूती को ध्यान में रखकर चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन उनकी दलील शायद दिल्ली के लोगों के गले नहीं उतरी. लगातार बड़े अंतर से चुनाव लड़ने वाली पार्टी का नेता चुनाव नहीं लड़े तो उसका विपरीत असर तो होना ही था.
गुटबाजी ने भी निभाई भूमिका
दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा यह भी हो रही है कि केरल के राज्यपाल पद से इस्तीफा देकर दिल्ली लौटीं शीला दीक्षित और प्रदेश नेतृत्व के बीच तलवारें खिंचने का भी गलत संदेश जनता में गया. दीक्षित ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ा दी. माना यह भी जाता है कि पार्टी की आपसी गुटबाजी ने भी दुर्दशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
चुनावी सर्वे का भी पड़ा असर
पार्टी चुनाव प्रचार में भी लगातार पिछड़ती गई. एक ओर आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव से दो माह पहले से ही दिल्ली में बैनर होर्डिग्स आदि लगाने का काम शुरू कर दिया था, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने चुनाव से करीब 10 दिन पहले अपना प्रचार शुरू किया. कांग्रेस की हार में सबसे बड़ी भूमिका चुनावी सर्वे ने भी निभाई. अलग-अलग सर्वे में कांग्रेस को हाशिए पर दिखाया गया जिससे मतदाताओं में यह भ्रम फैला कि कांग्रेस को वोट देना अपना वोट खराब करने के बराबर है. इसीलिए पार्टी को वोट करने वाले मतदाताओं ने भी आप का दामन थाम लिया.

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari