चिराग पासवान अपनी ही पार्टी लोजपा में पड़ गए अलग-थलग, चाचा पारस बोले मुझे भतीजे से नही है कोई दिक्कत
नई दिल्ली (आईएएनएस)। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष चिराग पासवान को उनके चाचा पशुपति कुमार पारस द्वारा लोकसभा में पार्टी के नेता के रूप में अपदस्थ करने के बाद सोमवार को हाई वाेल्टेज पाॅलिटिकल ड्रामा सामने आया। लोजपा की स्थापना चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान ने की थी, जिनका पिछले साल अक्टूबर में निधन हो गया था। लोकसभा में लोजपा के छह सांसदों में से पांच चिराग पासवान के खिलाफ गए, जिससे वह अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ गए, जिसे उनके पिता ने 21 साल पहले बनाया था। चिराग पासवान ने पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अपने पिता के निधन के बाद पार्टी की कमान संभाली थी।पारस ने पार्टी में चिराग पासवान की भूमिका पर टिप्पणी की
राष्ट्रीय राजधानी में पत्रकारों से बात करते हुए पशुपति कुमार पारस ने कहा, हमारी पार्टी में छह सांसद हैं। हमारी पार्टी को बचाने के लिए पांच सांसदों की इच्छा थी। इसलिए मैंने पार्टी को विभाजित नहीं किया है, मैंने इसे बचा लिया है। पार्टी में चिराग पासवान की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए, पारस जो रामविलास पासवान के सबसे छोटे भाई हैं ने कहा, चिराग मेरे भतीजे होने के साथ-साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। मुझे उनसे कोई दिक्कत नहीं है। पारस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी तारीफ की और कहा, नीतीश कुमार अच्छे नेता और विकास पुरुष हैं। उन्होंने आगे कहा कि लोजपा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ रहेगी क्योंकि यह उनके दिवंगत भाई की इच्छा थी।पार्टी छोड़ने वाले नेताओं से लोजपा में लौटने का भी आग्रह पारस ने अपने बड़े भाई के निधन के बाद पार्टी छोड़ने वाले नेताओं से लोजपा में लौटने का भी आग्रह किया, उन्होंने आरोप लगाया कि रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने पार्टी को पछाड़ दिया था। पारस के अलावा, चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज, महमूद अली कैसर, वीना देवी और चंदन सिंह बागी सांसदों में शामिल हैं। इस घटनाक्रम के बाद चिराग बातचीत के लिए अपने चाचा के घर गए लेकिन अपनी कार में ही बैठे रहे। पशुपति कुमार पारस करीब एक घंटे बाद घर से बाहर निकले
पशुपति कुमार पारस करीब एक घंटे बाद घर से बाहर निकले। चिराग पासवान ने बिना किसी गठबंधन के बिहार चुनाव लड़ने का फैसला किया था। उनके इस फैसले के बाद, बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल-यूनाइटेड को भारी झटका लगा क्योंकि वह त्रिकोणीय मुकाबले के कारण कई सीटों पर हार गई। चिराग ने बिहार में एक आक्रामक अभियान का नेतृत्व किया था और राज्य में नीतीश कुमार के शासन मॉडल पर भी सवाल उठाया था।