नन्हें कंधों पर एके-47, निशाने पर चरमपंथी
लेकिन अब इस गुट को कड़ी चुनौती दे रहे हैं इराक़ी सुरक्षा बलों की सहायता से स्थानीय लोग. उत्तर में कुर्द लड़ाकों में महिलाएं भी शामिल हैं जिनपर बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट आप पहले पढ़ चुके हैं.लेकिन बीबीसी संवाददाता गेब्रियल गेटहाउस ने पाया कि कुछ इलाक़ों में छोटे-छोटे बच्चे कंधों पर क्लाशनिकोव टांगकर चरमपंथियों से दो-दो हाथ कर रहे हैं.इस्लामिक स्टेट से घिरा एक शिया क़स्बातीन महीने तक आईएसआईएस के कब्ज़े में रहने के बाद उत्तरी इराक़ के अमेरली में अब जश्न मनाया जा रहा है.और अब यहां लड़ाई की वजह से बिछड़े परिवारों का भावुक मिलन हो रहा है.शिया लड़ाकू ग्रुप बद्र ब्रिगेड के कमांडर अली, सद्दाम हुसैन की सेना में अफ़सर थे और अब वो आईएसआईएस ले लड़ रहे हैं.
उनके हाथ में एक नक्शा है. वो नक्शे को दिखाकर कहते हैं, "रास्ता पूरी तरह से सुरक्षित है. ये अमेरली है. हम यहां हैं और आईएस यहां है."चल पड़ा काफ़िला
हमारा काफ़िला धीरे-धीरे सड़क पर बढ़ता जा रहा था.मैं कार से उतरकर लोगों से सवाल पूछने के लिए छटपटा रहा था. मैं पूछना चाह रहा था, "जबकि आसपास का सब कुछ आईएस के कब्ज़े में चला गया. तो यहां के लोगों ने उनसे कैसे लोहा लिया."लेकिन अली नहीं रुका. आख़िर में हम मुख्य रोड से हटकर एक संकरी गली में दाखिल हुए. वहां पर एक घर के पास हमारा काफ़िला रुका.अली ने लोहे के मुख्य द्वार को खटखटाया. कोई जवाब नहीं मिला. वो फिर चिल्लाया. जवाब ना मिलने पर वो दीवार फांदकर अंदर दाखिल हुआ.अली ने पाया कि उसकी बूढ़ी मां ने एक रिश्तेदार के घर पनाह ली हुई है. तीन महीने बाद मिले मां-बेटे ने एक दूसरे को गले लगाया और सुबक-सुबक कर रोने लगे.'लड़ाई के हीरो'
पहले मुझे लगा कि इन बातों को गंभीरता से लेने की क्या ज़रूरत. भला इतने छोटे बच्चों को लड़ाई के लिए कोई भेजता है? लेकिन मुझे लोगों ने बताया कि ये सच है.आईएसआईएस के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हर एक का संघर्ष करना ज़रूरी था. क्या छोटा और क्या बड़ा.लड़ाई में ज़बरदस्ती झोंक दिए गए लोगों के लिए घातक हथियार लिए ये बच्चे खौफ़ नहीं बल्कि गर्व का प्रतीक हैं.