लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि मोदी सरकार का पहला बजट यूपीए के बजट से अलग होगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बेटली के बजट में यूपीए 3 के बजट की छाप दिखी. यह बात मशहूर इकॉनॉमिस्ट सहित खुद चिंदबरम ने भी कहा.


जानिए कैसे है ये चिंदबरम का बजटचिदंबरम ने सरकारी कंपनियों से सितंबर के बजाय मार्च में ही भारी-भरकम अंतरिम डेविडेंड का ऐलान किया था. ऐसा कर उन्होंने फ्यूचर में होने वाली इनकम पहले ही सरकारी खाते में जोड़ ली थी. जेटली भी इस पॉलिसी को जसका तस लागू करेंगे. चिदंबरम ने डेविडेंड से 77,229 करोड़ रुपये मिलने का एस्टिमेट लगाया था, तो जेटली की उम्मीद 90,229 करोड़ रुपये की है. चिदंबरम ने डिसइन्वेस्टमेंट्स से जितनी रकम मिलने की उम्मीद की थी, जेटली को उससे ज्यादा का प्रोजेक्शन करना चाहिए था. खासतौर से फरवरी से स्टॉक मार्केट प्राइसेज में आए तेज उछाल को देखते हुए. जेटली ने हालांकि 7,000 करोड़ रुपए से कम की बढ़ोतरी का अनुमान जताया. किसी भी नेगेटिव डिवेलपमेंट का झटका बर्दाश्त करने के लिए यह सिर्फ एक उपाय बजट में है.क्या रहीं बजट की कमियां?
ऐसा नहीं है कि जेटली ने खराब बजट दिया है. बात यह है कि वे इससे अच्छा बजट दे सकते थे. बजट में प्रॉजेक्ट्स की झड़ी लगा दी गई है और उनके लिए एक के बाद एक एलोकेशंस किए गए हैं. गरीबों के लिए पॉलिसीज बनना अच्छा है लेकिन उन्हें सरकार पर डिपेंड नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि उनके लिए रोजगार के मौके तलाशने चाहिए. वैसा ही किसानों के साथ भी हुआ. भारी-भरकर क्रेडिट पॉलिसी का ऐलान किया गया है. किसानों को लोन के बोझ तले दबाना ठीक नहीं है. बेहतर होता अगर उन्हें उनकी फसलों का सही दाम दिलाने के लिए प्लानिंग की गई होती.

Posted By: Shweta Mishra