करीब दो हफ़्ते पुरानी नरेंद्र मोदी की सरकार की बातें और प्रशासनिक कदम लोकप्रियता के लिहाज से सही नज़र आ रहे हैं. लेकिन बीजेपी-नीत एनडीए गठबंधन की असली परीक्षा कई अन्य बड़ी चुनौतियों से निपटना होगा.


नई सरकार का पहला बजट संसद के मानसून सत्र में अगले महीने की शुरुआत में ही पेश किए जाने की उम्मीद है. यह नई सरकार की पहली मुख्य परीक्षा होगी क्योंकि समाज का हर वर्ग इसकी ओर देख रहा है और अरुण जेटली चाहेंगे कि विरोधाभासी हितों के बीच संतुलन बनाएं. यह तय है कि वह किसी न किसी वर्ग को निराश करेंगे.मौसम विभाग समेत विशेषज्ञों के बारिश कम होने के अनुमानों ने चिंताएं बढ़ाई ही हैं. यह पहला बड़ा संकट हो सकता है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था पर्याप्त बारिश पर बेहद निर्भर है.


जैसा कि 9 जून को संसद से संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इसकी आशंका जताई थी, उससे पता चलता है कि सरकार से लेकर सतर्क है. फिर भी मौसम विज्ञानियों का अल नीनो का डर अगर सच साबित हुआ तो वह मोदी के आर्थिक विकास को बहाल करने के वायदे पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.अवैध अप्रवासीख़राब मानसून से न सिर्फ़ खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फ़ीति बढ़ेगी बल्कि इससे सरकार की आर्थिक मजबूती के लक्ष्य को भी धक्का लगेगा. सरकार को डीज़ल पर सब्सिडी बढ़ानी पड़ सकती है जिसे वह आगामी बजट में ख़त्म करने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है.

महंगाई, ख़ासतौर पर खाद्य पदार्थों की, नई सरकार के लिए एक और चुनौती है. सत्ताधारी बीजेपी इससे पहले की यूपीए सरकार को अभूतपूर्व मूल्यवृद्धि के लिए ज़िम्मेदार ठहराती रही है.एक ओर जहां ऐसी समस्याओं के समाधान की ज़रूरत है वहीं दक्षिणपंथी ताकतें, ख़ासतौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ीं, मोदी, उनकी सरकार और बीजेपी के लिए भारी सिरदर्द बनने जा रही हैं. मोदी के सत्ता में आने के बाद से यह शक्तियां ज़्यादा खुलकर सामने आ गई हैं और सक्रिय हो गई हैं क्योंकि दक्षिणपंथी नेताओं ने सफ़लता का स्वाद चख लिया है और उनका मानना है कि इसकी वजह हिंदुओं का बीजेपी के पीछे एकजुट होना है.अभी से ही नोएडा, मुज़फ़्फ़रनगर, तौरू, बेलगाम, हैदराबाद, पुंछ और तो और अहमदाबाद से भी सांप्रदायिक झड़पों की ख़बरें आने लगी हैं. कानून और व्यवस्था राज्य का विषय होने के बावजूद मोदी सरकार को शरारती तत्वों और नफ़रत फैलाने वालों को नियंत्रण में रखने में सचमुच में चुनौती पेश आने वाली है.

और अंत में यह कहना ज़रूरी नहीं लगता कि इस गैर-कांग्रेसी सरकार से लोगों की भारी उम्मीदें सबसे बड़ी चुनौती हैं. सरकार को इन उम्मीदों को हकीकत में बदलना होगा और यह स्वीकार करना होगा कि इन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ज़मीनी काम करने की ज़रूरत है खोखले वायदों की नहीं.

Posted By: Subhesh Sharma