क़ैद से छूटा एक फ़ौजी जो जेल वापस लौट गया
इस घटना का पता लगाने वाले इतिहासकार रिचर्ड वैम इम्डेन ने बीबीसी को बताया कि कैप्टन रॉबर्ट कैम्पबेल ने क़ैसर विल्हम द्वितीय से इस रिहाई के बदले वापस लौट आने का वादा किया था और वह केंट से जर्मनी वापस लौट गया.रिचर्ड कहते हैं, "कैप्टन कैम्पबेल को लगा होगा कि अपने वादे को पूरा करना उनका फ़र्ज़ है."रिचर्ड को अपने शोध में ये भी पता चला कि कैप्टन कैम्पबेल ने जर्मनी वापस लौटने के बाद जेल से भागने की कोशिश भी की थी.इतिहासकार रिचर्ड को इस कहानी का पता उस वक़्त चला जब वे अपनी किताब 'मीटिंग द एनेमीः दि ह्यूमन फ़ेस ऑफ़ ग्रेट वार' के लिए नेशनल आर्काइव्स में विदेश विभाग के दस्तावेज़ खंगाल रहे थे.ईस्ट सरे रेजीमेंट के फ़र्स्ट बटालियन के कैप्टन कैम्पबेल 24 अगस्त 1914 को उत्तरी फ्रांस में पकड़ लिए गए थे. उस वक़्त उनकी उम्र 29 साल थी.
माँ की मृत्यु
ऐसी ही एक गुज़ारिश ब्रिटेन के नियंत्रण में रह रहे जर्मन युद्धबंदी पीटर गैस्ट्रिक ने भी की थी जिसे यह इजाज़त नहीं दी गई जिसके बाद जर्मनी में किसी अन्य ब्रितानी क़ैदी को इस तरह की छुट्टी नहीं दी गई.लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती है. कैप्टन कैम्पबेल युद्धबंदी शिविर में लौटते ही भागने की कोशिश करते हैं.कुछ साथी क़ैदियों के साथ कैम्पबेल नौ महीने तक खुदाई करते हैं और भागने के क्रम में हॉलैंड की सीमा के पास फिर से पकड़ लिए जाते हैं.'द डेली मेल' अख़बार के मुताबिक़ युद्ध समाप्त हो जाने के बाद कैप्टन कैम्पबेल ब्रिटेन वापस लौट आए और 1925 तक सेना में बने रहे.दूसरे विश्व युद्ध के समय 1939 में कैम्पबेल सेना में दोबारा भर्ती हो गए थे. साल 1966 के जुलाई महीने में 81 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.