बेल्जियम के भौतिक विज्ञानी फ़्रांस्वा इंगलर्ट और ब्रिटेन के पीटर हिग्स को 2013 के भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है.


रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ़ साइंसेस ने पुरस्कार का ऐलान करते हुए कहा, "दोनों वैज्ञानिकों ने परमाणु से छोटे कणों के द्रव्यमान को समझाने की प्रक्रिया की सैद्धांतिक खोज की है."एकेडमी के अनुसार बीते साल जेनेवा में एक प्रयोगशाला में हिग्स पार्टिकल की खोज से इन वैज्ञानिकों के सिद्धांतों की पुष्टि हुई है. इस कण को हिग्स बोसॉन भी कहा जाता है.रॉयल स्वीडिश एकैडमी ऑफ साइंसेस के स्थायी सचिव स्टैफन नॉरमार्क ने कहा, “इस साल का पुरस्कार एक बहुत छोटी चीज़ के बारे में है जो बहुत बड़ा असर डालती है.”प्रोफ़ेसर हिग्स मीडिया से दूर रहने के लिए जाने जाते हैं और जब नोबल पुरस्कार का ऐलान हुआ उसके ठीक बाद भी उनसे इंटरव्यू के लिए संपर्क नहीं किया जा सका.


एडिनबरा विश्वविद्यालय में उनके साथ काम करने वाले ऐलन वॉकर ने ब्रितानी मीडिया को कहा, "वह मीडिया से बचने के लिए बगैर फ़ोन लिए छुट्टी पर गए हुए हैं. उनकी तबीयत भी ठीक नहीं है."जेनेवा के परमाणु अनुसंधान संगठन सर्न के वैज्ञानिक 2012 में इस कण को खोज पाए. यूरोपियन पार्टिकल फिज़िक्स लैबोरेट्री ने जुलाई में इसका ऐलान किया था.

हिग्स बोसॉन को "गॉड पार्टिकल" भी कहा जाता है. इस कण की खोज के लिए हज़ारों वैज्ञानिकों को लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में प्रोटॉनों की टक्कर से मिले काफ़ी लंबे-चौड़े आंकड़ों को खंगालना पड़ा.लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर की लागत 10 अरब डॉलर यानी करीब 62 हज़ार करोड़ रुपए है और ये स्विटज़रलैंड और फ्रांस की सीमा पर 27 किलोमीटर में फ़ैला हुआ है.लेकिन 10 खरब में से एक टक्कर से ही एक हिग्स-बोसॉन मिल पाता है. सर्न को ये तय करने में भी कुछ समय लगा कि ये खोजा गया कण हिग्स-बोसॉन ही है और उसी तरह का कोई दूसरा कण नहीं है.

Posted By: Subhesh Sharma