अब समझ में आ रहा है कि संस्कारी पहलाज जी को ये फिल्म क्यों इतनी चुभ गई की उन्होंने फिल्म की ऐसी तैसी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' फेमिनिस्ट फिल्म नहीं है।ये फिल्म बोल्ड है ब्‍यूटीफुल है इसलिए मर्दों के लिए अनकम्फर्टेबल है। ये फिल्म उन मर्दों को स्ट्रिप करती है जिनकी असल में ये कहानी है।

कहानी
एक पति जो अपनी हवस को मर्दानगी समझता है, एक बाप जो अपनी बेटी को बुरखे में दफन कर देना मर्दानगी समझता है, एक स्टड जिसके लिए पल्प फिक्शन तो  रियल है, पर रियलिटी असल में फिक्शन है और एक बॉयफ्रेंड जिसकी निगाह में जिस्म की भूख अगर औरत की हो तो गुनाह है...और इन सब से जुडी हुई चार औरतों की कहानियां सबप्लाट हैं, क्योंकि औरत की कहानी थोड़े ही न हो सकती है, वो तो बस फिलर है।

रेटिंग :  ****

 

अदाकारी
फिल्म की पूरी कास्ट अपने अपने किरदारों में एक दम फिट है, पर रत्नापाठक शाह जी के लिए सीट से उठ कर तालियाँ बजाने का मन ज़रूर किया, रोल कैसा भी हो और कोई भी हो, वो हमेशा उस रोल को ख़ास बना ही देती हैं। कोंकना सेन शर्मा और सुशांत सिंह ने भी शानदार परफॉरमेंस दिया है। विक्रांत मेस्सी ने फिर से डेथ इन गंज के बाद एक अवार्डवर्दी परफोर्मेंस दिया है, निश्चित ही वो इस समय के सबसे टैलेंटेड एक्टर्स में से एक हैं, हैट्स ऑफ !

 

 

 

संगीत:
फिल्म के हिसाब से एक दम ठीक है, 'ले ली जान', काफी अच्छा बन पड़ा है। पार्श्वसंगीत बेहतरीन है।

अगर आप मर्द हैं, तो ये फिल्म आपको अनकम्फर्टेबलकॉम कर देगी, शायद फिल्म देखते वक़्त आपका छिछोरापन निकल कर आ जाए और आप चलती फिल्म के दौरान किसी सीन पर एक छिछोरा कमेंट या सीटी मार दें, पर यही तो फिल्म का मकसद है शायद, आपकी असलियत आपको दिखाना, ये फिल्म मर्दों के देखने के लिए बनाई गई है, क्योंकी औरतें  तो ये सब कुछ जानती ही हैं, और तो और वो मर्दों के खराब रवैय्ये के कारण सीख चुकी हैं अपनी खुशियों को ढूढ़ लेना, चाहे वो घूघट के नीचे हो या बुर्के के पीछे। वो अपनी ज़िन्दगी जी रही हैं, लिपस्टिक वाले सपनों में।

Review by: Yohaann Bhaargava
www.scriptors.in

Bollywood News inextlive from Bollywood News Desk

Posted By: Chandramohan Mishra