पटना के जानेमाने प्लास्टिक सर्जन डॉ. एस.ए. वारसी की कुशलता और माइक्रो सर्जरी तकनीक ने मोहन को एक नया जीवनदान दे दिया। अब वो सामान्य आदमी की तरह चलते हैं।

पटना ब्‍यूरो। मोहन राय (बदला हुआ नाम) 6 महीने पहले एक दुर्घटना में अपने पैर का तलुआ खो दिया था। इस हादसे के बाद उनकी जिंदगी मुश्किलों से भर गई थी। स्थिति दिव्यांगता की ओर मुड़ गई थी। लेकिन पटना के जानेमाने प्लास्टिक सर्जन डॉ। एस.ए। वारसी की कुशलता और माइक्रो सर्जरी तकनीक ने उन्हें एक नया जीवनदान दे दिया। अब वो सामान्य आदमी की तरह चलते हैं। जानकारी के मुताबिक कई जगह से नाउम्मीद होने के बाद उनके बेटे आशीष राय उन्हें डॉ। वारसी के यूनिट में भर्ती कराए। यहां मोहन राय की चार सर्जरी हुईं; दो बार सफाई के लिए, एक बार मांस लगाने के लिए और आखिरी बार पतला चमड़ा लगाने के लिए। तलवा को बनाने के लिए मांस पीठ से लिया गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि मांस लगाने के लिए माइक्रो सर्जरी विधि का इस्तेमाल किया गया जो कि दुनिया की सर्वोत्तम विधि है। यह विधि विशेष रूप से इस तरह के मरीजों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अन्य तरीकों से मांस ठीक से नहीं लग पाता और मरीज जीवन भर किसी न किसी तरह से परेशान रहते।

बिना किसी सहारे के चलने लगे

मोहन लगभग 15 दिन अस्पताल में भर्ती रहे। लगभग 3 महीने बाद वह बिना किसी सहारे के चलने लगे। आज वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अपना सारा काम आराम से कर रहे हैं। इस संबंध में प्लास्टिम सर्जन डॉ। एसए वारसी ने बताया कि मोहन राय का मामला माइक्रो सर्जरी तकनीक की सफलता का एक जीवंत उदाहरण है। यह तकनीक जटिल चोटों और विकृतियों के इलाज में अत्यधिक प्रभावी है, जो पहले असंभव मानी जाती थी। मोहन राय के मामले में तय कर पाना मुश्किल था कि कहां का मांस और चमड़ा लिया जाए तो तलवा की तरह काम करे। माइक्रो सर्जरी ने मोहन जैसे कई लोगों को नया जीवन दिया है और उन्हें दर्द और परेशानी से मुक्ति दिलाई है। यह खबर उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो गंभीर चोटों से जूझ रहे हैं। माइक्रो सर्जरी जैसी तकनीकें उन्हें उम्मीद देती हैं कि वे भी एक स्वस्थ और सक्रिय जीवन जी

Posted By: Inextlive