हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना ही असली तप - जैन मुनि प्रमाण सागर
पटना (ब्यूरो)। कंगन घाट में बने भव्य पंडाल में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव के पांचवें दिन सोमवार को जैन मुनि प्रमाण सागर जी महाराज ने मंगल प्रवचन में कहा कि असली तप हर परिस्थिति में मन की प्रसन्नता को बनाये रखना है। तप हमारी चेतना को निखारता है। कटु शब्द को सुनकर नजरअंदाज करना भी एक तप है। सुबह में जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा, जन्म कल्याणक पूजन के बाद तप कल्याणक महोत्सव मनाया गया। जिसमें सांसारिक जीवन से वैराग्य के मार्ग को बताया गया। भगवान आदिनाथ के जन्म और तप कल्याणक से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों को कलाकारों ने बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। दीक्षा कल्याणक की क्रिया विधि विधान पूर्वक जैन मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज के कर कमलों से संपन्न हुई।
सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित
राज्यसभा सांसद व बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने धर्म महासभा में शामिल होकर जैन मुनि का आशीर्वाद प्राप्त किया। उनके साथ आयोजन समिति के अध्यक्ष पद्मश्री विमल जैन, अमित कानोडिया, संजीव कुमार यादव समेत अन्य उपस्थित थे। महामहोत्सव में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों कि शृंखला में भारतीय तपोवन आर्ट ग्रुप दिल्ली सौरभ जैन द्वारा प्रस्तुति दी गई। पंडाल में राजा नाभि राय ने उन्हें अयोध्या का महाराजा घोषित करते हुए उनका राज्याभिषेक किया। महाराजा नाभिराय के महल में आदिनाथ के विवाह की रस्में हुईं। आदिकुमार का राज्याभिषेक किया गया। मीडिया प्रभारी प्रवीण जैन ने बताया कि मंगलवार को आदिनाथ के ज्ञान कल्याणक को भक्तिभाव के साथ मनाया जाएगा।
जीवन में दुख का कारण मन में आशा व तृष्णा का भाव है-जैन मुनि
जैन मुनि प्रमाण सागर ने प्रवचन के दौरान कहा कि जो धर्म की शरण आता है वह शीघ्र भव पार हो जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान के जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ था। उनके पुण्य का अतिशय इतना प्रबल होता है कि उनका सब कुछ ठाठ बाट की तरह होता है। जिनके जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं था फिर भी उन्होंने दीक्षा ली। भीतर से सबकुछ पाने के लिए मैंने दीक्षा ली। मनुष्य के जीवन में दु:ख का कारण उसके मन में आशा और तृष्णा के भाव हैं जो विकारों को जन्म देते हैं। उससे बचने के लिए विकारों को त्यागना होता है। जिनका कल्याण सुनिश्चित है वे भी एक हजार वर्ष तक तप कर रहे हैं। आत्मशुद्धि का एक मात्र मार्ग तप है। आत्मा के भरोसे से जीने वाला भगवान बनता है। भगवान भाग्यवान थे। शक्ति के अनुरूप तप, त्याग करना है। और आत्मा का उद्धार करना है। भगवान के मार्ग को पाओ, वो एक दिन भगवान बन जाता है।
महोत्सव में युवराज आदिकुमार का विवाह संस्कार हुआ