कार्तिक शुक्ल सप्तमी से पूर्णिमा तक होता है सामा-चकेवा खेल महिलाएं शाम को प्रतिदिन खेलती खेल

पटना ब्‍यूरो। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया है। शाम ढलते ही बहनें अपनी संगी सहेलियों संग टोली में लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकलती हैं। डाला में सामा चकेवा को सजा कर सार्वजनिक स्थान पर सामा खेले गेलियई भाई के आंगन हे डाला ल बहार भेली बहिनो जे जैसे कई गीत
बैठ कर प्रति दिन गाती है। इस दौरान
गीत गाकर आपस में हंसी-मजाक लोकगीत के माध्यम से करती हैं। सामा चकेबा प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण, पक्षियों के प्रति प्रेम व भाई-बहन के परस्पर स्नेह संबंधों का प्रतीक है।

-सामा-चकेवा का कल होगा विसर्जन

आचार्य राकेश झा ने बताया कि कार्तिक शुक्ल सप्तमी 8 नवंबर से आरंभ हुए भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा को 15 नवंबर शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा में विराम देकर पूनम की चांद की रोशनी में विसर्जित किया जाएगा। बहने अपनी भाई की दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए सामा को भाभी व चकेवा को भाई मानकर खेल रही है । मिट्टी के सामा-चकेवा के साथ मिट्टी के बर्तन, खिरलीच बहन, वृंदावन व चुंगला, सतभइयां, सिक्की के वृंदावन को दीये से आग लगाकर वृंदावन वन में आग लागललोकगीत गा रही हैं। जहां एक ओर भाई-बहन के स्नेह की अटूट डोर है, वहीं दूसरी तरफ ननद-भौजाई की हंसी-ठिठोली भी कम नहीं।

-बेटी की तरह होगी सामा की विदाई

कार्तिक शुक्ल रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में बहनें अपने भाइयों को धान की नई फसल का चुरा व दही खिला कर सामा-चकेवा की मूर्तियों को नदी- तालाबों में विसर्जित करेंगी। सामा को बेटी की तरह मि_ी के बने पेटारी, टिहुली, कचबचिया, चिरोता, हंस, सतभईया, चुगला, वृन्दावन, ढोलकिया, कुत्ता, नौकर आदि प्रतीकों के साथ विदाई की जाएगी । इसके लिए बहने आपने भाई को मुढ़ी, बताशे का पाथेय देंगी और भाई डोली लेकर पूरी श्रद्धा से जलाशय में प्रवाहित कर विदाई करेंगे। सामा-चकेवा का यह उत्सव मिथिला की प्रसिद्ध संस्कृति और कला का एक अभिन्न अंग है, जो आपसी प्रेम को बढ़ाता है।

-बहन के सुख-दु:ख में भाई की रहेगी भागीदारी

कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें लड्डू, पेड़ा, बतासा, मूढ़ी व चूड़ा आदि से भाई की झोली भरती है। मान्यता है कि बहनें भाई की झोली भरकर उनके यहां हमेशा धन-धान्य भरे रहने की कामना करती हैं। वहीं भाई छोटी व बड़ी बहनों को बदले में उपहार,धन या कपड़े देकर उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि उनकी खुशी व दुख में वे हमेंशा उनके साथ रहेंगे।

सामा-चकेवा का उल्लेख पदम् पुराण में

पंडित राकेश झा ने कहा कि मिथिला का लोक पर्व सामा-चकेवा का उल्लेख पदम् पुराण में मिलता है ।
भगवान कृष्ण की पुत्री श्यामा व पुत्र साम्ब के बीच अपार स्नेह था। कृष्ण की पुत्री श्यामा ऋषि कुमार चारूदत्त से ब्याही गयी थी। श्यामा ऋषि-मुनियों की सेवा करने बराबर उनके आश्रमों में जाया करती थी। भगवान कृष्ण के दुष्ट स्वभाव के मंत्री चुरक के चुगली करने से उन्होंने श्यामा को मैना पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया। श्यामा का पति चक्रवाक ने पत्नी वियोग में मैना बन गया। श्यामा के भाई साम्ब ने अपने बहन-बहनोई की इस दशा से मर्माहत होकर अपने पिता की ही आराधना कर वरदान स्वरूप अपने बहन-बहनोई को श्राप से मुक्त कराया तभी से सामा-चकेवा का पर्व मनाया जाता है ।

Posted By: Inextlive