बिंदास पटनाइट्स ने कहा, अब तो हद हो गई..
- शहर में गंदगी और ट्रैफिक प्रॉब्लम दूर करना सबसे जरूरी
- सिविक सेंस ठीक हो जाए, तो सॉल्यूशन खुद ही हो जाएगा आजादी मिले बरसों बीत गए, पर अब तक सही मायनों में हम 'आजाद' नहीं हुए। हमारी प्रॉब्लम जस की तस बनी हुई है। आजादी जैसा सुखद अहसास शायद ही कुछ हो, पर बात जब आजादी से जीने के मायनों की हो, तो कई ऐसी बातें हैं, जिसका होना या न होना हमें टीसता है। बोलने की इसी आजादी पर पटनाइट्स ने आई नेक्स्ट से शेयर की अपनी फीलिंग्स। एक ओर उन्होंने अपनी समस्याएं गिनाई, इसके पीछे खुद को भी जिम्मेवार माना। सिविक सेंस का न होना भी एक चिंता का विषय बताया। इंडिपेंडेंस डे की पूर्व संध्या पर हमने शहर के विभिन्न इलाकों से कुछ लोगों के दिल को टटोला और जानने की कोशिश की उनके बिंदास बोल गंदगी ऐसी कि पूछो मतगंदगी, गंदगी और सिर्फ गंदगी। इससे हमें कौन निजात दिलाएगा? अगर कोई नहीं तो हम इस शहर में आखिर कैसे रहेंगे? निगम निकम्मा, सरकार उदासीन और परेशान पटनाइट्स। समस्या का हल तो हमें चाहिए ही। खासतौर पर इसमें लोगों को भी अपने लेवल पर जिम्मेदारी निभानी होगी। वेस्ट मैनेजमेंट को शहर में गंभीरता से लागू करना होगा। गंदगी और संक्रमण का एक मजबूत रिश्ता होता है। अगर इसके चक्र को तोड़ दें, तो हम काफी हद तक हम शहर में संक्रमण के कारण होने वाली बीमारियों से सेफ रहेंगे।
- डॉक्टर रमन सिविक सेंस पहले क्या हम शहर की नारकीय स्थिति के लिए आखिर किसे कितना कोसेंगे। सरकार और इससे जुड़ी एजेंसियां हमें सहयोग करें, इससे पहले शहरवासी कम से कम अपने लेवल की जिम्मेवारी तो निभा ही सकते है। पटना शहर में ऐसा है ही नहीं। जिसे देखो कहीं भी गंदगी फैला रहा है, महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव हो रहा है। सड़क पर ट्रैफिक नियमों को ठेंगा दिखाकर रैश ड्राइविंग हो रही है। बस में बुजुर्गो की सीट पर यूथ टांग फैलाए बैठे रहते हैं। हां, ठीक है आजादी है लेकिन संविधान में इसका जिक्र कर्त्तव्य के साथ किया गया है। - विक्रम, प्रोफेशनल पर, सूरत तो नहीं बदली नहींगंगा नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक शहर का आज कोई सौंदर्य नहीं है। शहर सालों से बसते-बसते घना होता गया और आज कहीं भी प्लानिंग जैसी चीज नहीं दिखती और फिर सूरत बदरंग होती गई। गांधी मैदान, डाकबंगला, बेली रोड और पटना सिटी जैसे इलाकों में एंक्रोचमेंट, ट्रैफिक जाम समस्याएं आम हैं। अफसोस की बात है कि मास्टर प्लान तब आया है, जब शहर सघन रूप से बस चुका है। अब इसके प्रावधानों को अगर लागू भी किया जाता है, तो यह कितना प्रभावी होगा समझ से परे है।
- टिंकू तांती, प्रोफेशनल