बेटे के जीत से गदगद पिता बोले - पोलियोग्रस्त होने के बाद भी देश को किया गौरवांवित
पटना ब्यूरो। "मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी हो, अगर हौसले बुलंद हो, तो हर सपना हकीकत में बदला जा सकता हैक्र" कुछ ऐसी ही कहानी बिहार के लाल शरद कुमार की है। जिन्होंने जीवन की सबसे कठिन चुनौतियों को पार कर, पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। सफलता की छलांग लगाने वाले 32 वर्षीय शरद कुमार के घर में जश्न का माहौल है। शरद ने लगातार दो ओलंपिक में पदक हासिल कर कीर्तिमान बनाया है। मूलत मुजफ्फरपुर के रहने वाले शरद के पैरेंट्स पटना के एक्जीबिशन रोड में रहते हैं। बेटे के इस सफलता पर जानें पैरेंट्स ने क्या कहा।
बचपन से संघर्ष रहा है जारी
पेरिस पैरालंपिक में शरद कुमार ने हाई जंप इवेन्ट में ऊंची कूद टी63 स्पर्धा में 1.88 मीटर की हाई जंप लगाकर सिल्वर मेडल अपने नाम किया। उनकी इस उपलब्धि पर उनके पिता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि इस उपलब्धि के बाद से उन्हें बधाई देने के लिए शुभचिंतकों के लगातार फोन आ रहे हैं। उनके बेटे ने जो यह उपलब्धि हासिल की है, वह उसके संघर्ष की दास्तां है। बताया दो साल की उम्र में पोलियो ने शरद की जिंदगी बदल दी। लेकिन उनके सपनों को कोई नहीं रोक पाया। जब दूसरे बच्चे दौड़ते-भागते थे, शरद संघर्ष कर रहे थे। लेकिन उन्होंने कभी अपनी शारीरिक स्थिति को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। शरद को तीन साल की उम्र में पढ़ाई के लिए दार्जिलिंग उनके बड़े भाई सलज कुमार के पास भेज दिया गया।
शरद के पिता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि मेडल जीतने के बाद रात में उसने फोन किया था और उनकी बातचीत हुई थी। गोल्ड मेडल नहीं जीतने का मलाल था, लेकिन देश के लिए सिल्वर जीतने की खुशी भी थी। इस बार गोल्ड जीतने के लक्ष्य से चूक गए लेकिन ओलंपिक में गोल्ड जीतने का लक्ष्य है। परिवार में सभी का हाल-चाल जाना और पदक जीतने पर खुशी के आंसू आंखों में थे। उन लोगों ने भी उसे बधाई देते हुए कहा कि देश के लिए पदक जीते हो तो अपने साथियों के बीच जश्न मनाओ।
बड़ा भाई भी ऊंची कूद के खिलाड़ी
शरद के पिता बताते हैं कि शरद के बड़े भाई सलज स्कूल से ही ऊंची कूद के खिलाड़ी रहे। शरद की रूचि उन्हें देखकर ही इस खेल में जागी। अपनी मेहनत और भाई की प्रेरणा से उन्होंने 7वीं कक्षा में ही जिला स्तर पर सलज का रिकॉर्ड तोड़ दिया। शरद की मां कुमकुम कुमारी बताती हैं कि शरद हमेशा से कहता था कि मैं कुछ बड़ा करूंगा, पूरी दुनिया में घुमूंगा और हमारे परिवार का नाम ऊंचा करूंगा।
शरद के पिता सुरेंद्र कुमार ने बताया कि इस बार के पैरालंपिक टूर्नामेंट में भी शरद काफी दर्द में था। घुटने में उसके दर्द था। वह अपने बेटे को फोन पर यही कहते थे कि देश के लिए पदक जीतने का मौका हर किसी को नहीं मिलता इसलिए हारना नहीं है, जी जान लगाकर खेलो। अब शरद आराम से अपने घुटने के दर्द का इलाज करवाएंगे।
पढ़ाई में भी अव्वल है शरद
शरद की मां बताती हैं कि उन्हें अपने बेटे पर बहुत गर्व है। खेलकूद के साथ-साथ वह पढ़ाई में भी काफी अच्छा है। 10वीं और 12वीं में अच्छे अंक लाने पर डीयू के किरोड़ीमल कॉलेज में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन हुआ और फिर जेएनयू से एमए किया। पैरा खेलों में लगातार भाग लेते रहा। खेल में कई बार इंजरी हुई, बावजूद इसके पढ़ाई पर ना असर पडऩे दिया ना ही अपने खेल के परफॉर्मेंस पर। ऊंची कूद में कई बार चोट लगने पर कई दिनों तक बिस्तर पर रहना पड़ जाता था। लेकिन शरद ने अपने हौसले को कभी कमजोर नहीं होने दिया।
शरद कुमार का यह दूसरा पैरालंपिक मेडल है। इससे पहले उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में 1.83 मीटर की ऊंचाई के साथ कांस्य पदक जीता था। इस प्रतियोगिता में उन्होंने 1.88 मीटर की ऊंचाई पार की, जिससे उन्होंने मरियप्पन के 1.86 मीटर के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। हालांकि, 1.91 मीटर की ऊंचाई पार करने में वे असफल रहे, लेकिन उनकी 1.88 मीटर की छलांग ने उन्हें सिल्वर मेडल दिलाया। इस स्पर्धा में अमेरिका के एज्रा फेज ने 1.94 मीटर के नए रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता।