विश्व में सबसे तेज़ी से विस्तृत हो रही हिन्दी भाषा
पटना (ब्यूरो)।इस समय संसार में सबसे तीव्र गति से विस्तृत हो रही भाषा का नाम हिन्दी है। आधुनिक हिन्दी जो संसार की सबसे नवीनतम भाषा है, आज संख्या की दृष्टि से विश्व की दूसरी भाषा बन चुकी है। विश्व के 150 से अधिक देशों के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में इसकी पढ़ाई हो रही है। सबा अरब से अधिक लोग हिन्दी पढ़, बोल और लिख सकते हैं.यदि यह चीन की मंदारिन की भांति, भारत की राष्ट्रभाषा बना दी गयी होती तो आज, संख्या की दृष्टि से बोली जानेवाली यह विश्व की सबसे बड़ी भाषा होती।
यह बातें बुधवार को, विश्व हिन्दी दिवस पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
-अनेक भाषाएं बोली जाती है।
डा सुलभ ने कहा कि हिन्दी एक विशुद्ध वैज्ञानिक और सरस भाषा है। यह अपनी वैज्ञानिकता, माधुर्य और बाज़ार की मांग के कारण पूरे विश्व में बहुत तेज़ी से विस्तृत हो रही है। किंतु पीड़ा और लज्जा का विषय यह है कि यह आज तक वह स्थान प्राप्त नहीं कर पायी, जो इसे भरत के संविधान ने 14 सितम्बर, 1949 को प्रदान किया था।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष एवं पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि भारत विविधताओं का देश है। यहां अनेक भाषाएं बोली जाती है। किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से हम सभी एक है। यह दु:ख की बात है कि हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा नहीं बनायी जा सकी। जबकि स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह एक मत बना था कि भारत को एक सूत्र में जोडऩे के लिए, देश में सर्वाधिक स्थानों पर बोली जाने वाली भाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनायी जाएगी। एक राष्ट्र, एक विधान और एक ध्वज की बातें हो रही हैं, तो एक राष्ट्र की बात भी होनी चाहिए। विश्व हिन्दी दिवस पर हमें इसी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढऩा चाहिए.दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय, डा मधु वर्मा, पारिजात सौरभ, डा सच्चिदानन्द प्रेमी, डा पूनम आनन्द तथा आनन्द किशोर मिश्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
-20 हिन्दी सेवियों को, हिन्दी-रत्न अलंकरण
इस अवसर पर, 20 हिन्दी सेवियों को, हिन्दी-रत्न अलंकरण से विभूषित किया गया, जिनमें वरिष्ठ कवि बाबूलाल मधुकर, डा कालेश्वरी प्रसाद यादव, डा विद्या चौधरी, डा रामकृष्ण संज्ञायन, कमलेश पूण्यार्क , विकास कुमार झा, डा राम दूबे, कमला प्रसाद, डा पंकजवासिनी,सिद्धेश्वर, कमल किशोर वर्मा कमल, ज्योति मिश्र, प्रीति सुमन, कुमुद कुमार मिश्र, डा सरिता सिन्हा, उमेश कुमार पाठक रवि, डा आभा रानी, शक्ति प्रिया, अरविन्द अकेला तथा डा वर्षा रानी के नाम सम्मिलित हैं।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कवयित्री आराधना प्रसाद, आचार्य विजय गुंजन, डा पुष्पा जमुआर, इंदु उपाध्याय, अनिता सिद्धि, शमा कौसर शमा, डा गीता सहाय, डा मीना कुमारी परिहार, मधुरानी लाल, डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, शुभचंद्र सिन्हा, ई अशोक कुमार, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, शंकर शरण मधुकर, ज्योति कुमारी, रिम्पी ऐश्वर्य, राजप्रिया रानी, राम कृष्ण, डा पंकज कुमार सिंह आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।