जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने महात्मा और शास्त्री को किया श्रद्धा-पूर्वक स्मरण.


पटना ब्‍यूरो। संविधान बनने तक यदि महात्मा गांधी जीवित रहते तो भारतीय संविधान का स्वरूप कुछ और ही रहता। संविधान-सभा की प्रथम बैठक में हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा घोषित हुई होती। गांधी जी हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा मानकर अखंडित भारतवर्ष में इसके महत्त्व को समझाने और प्रचार में लगे रहे थे। उन्होंने अहिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी-प्रचार की अनेक संस्थाएं स्थापित की.यह बातें बुधवार को साहित्य सम्मेलन में आयोजित महात्मा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री जयंती पर आयोजित राष्ट्रभाषा-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि गांधी जी कहा करते थे कि भले ही अंग्रेज कुछ दिन और ठहर जाएं किंतु अंग्रेज़ी को भारत से शीघ्र विदा की जानी चाहिए। वे यह इसलिए कहा करते थे कि भारत की आत्मा को अपना पुराना स्वरूप ग्रहण करने में अंग्रेज़ी ही सबसे बड़ी बाधा है।-भारत के द्वितीय किंतु अद्वितीय प्रधानमंत्री थे
डॉ। अनिल सुलभ ने शास्त्री जी को स्मरण करते हुए, उन्हें गांधी जी का सच्चा अनुयायी तथा भारत का सच्चा और सबसे अच्छा लाल बताया। वे भारत के द्वितीय किंतु अद्वितीय प्रधानमंत्री थे.इस अवसर पर उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, प्रो रत्नेश्वर सिंह, डा ध्रुव कुमार, डा ओम् प्रकाश पाण्डेय, डा मेहता नगेंद्र सिंह, प्रो सुशील कुमार झा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

Posted By: Inextlive