Muzaffarpur Shelter Home case: हेड सर के नाम से पुकारा जाता था ब्रजेश, मधु थी प्लानर
पटना (ब्यूरो)। Muzaffarpur Shelter Home case: बालिका गृह मामले का मास्टरमाइंड ब्रजेश ठाकुर समाज की नजरों में पत्रकार, अखबार का मालिक, नेता और एनजीओ संचालक था। लेकिन अंदर से कुछ और ही था। चालाक इतना कि एनजीओ से कोई रिश्ता नहीं और अखबार में नाम का पत्रकार। रिपोर्टरों को मान्यता देने वाली कमेटी का मेंबर भी था। बालिका गृह में सभी ब्रजेश को हेड सर के नाम से जानते थे। लड़कियों के लिए यह नाम किसी दहशत से कम नहीं था। उसे तब बुलाया जाता था, जब किसी लड़की की पिटाई करनी होती थी। लड़कियों ने कहा कि नशीली दवा खिलाने के बाद ब्रजेश उसे हवस का शिकार बनाता था।चलता था पाप का साम्राज्य
मधु के सहारे ही ब्रजेश के पाप का साम्राज्य चलता था। वह शातिराना अंदाज में काम करती थी। ब्रजेश की जितनी बड़ी राजदार थी, उतनी ही बड़ी प्लानर भी। कांड में संलिप्तता सामने आने के बाद पुलिस और सीबीआइ उसे महीनों तलाश नहीं पाई थी। वह सीबीआइ के सामने भी तब आई, जब उसने इसकी प्लानिंग कर ली थी। कचहरी जैसे सार्वजनिक स्थान पर सीबीआइ अधिकारी को बुलाकर अपने को पेश करना इसी का हिस्सा था।अर्श से फर्श पर ब्रजेश
पहले ब्रजेश और उसके परिवार की तूती बोलती थी। प्रेस, होटल, रीयल स्टेट, कई स्थानों पर जमीन व करोड़ों के लेन-देन वाले उसके परिवार की शहर में खास पहचान थी। राजनेताओं से लेकर अधिकारियों तक में उसकी पहुंच ने एक खास हनक पैदा की थी। आयकर विभाग ने शिकंजा कसा तो यह परिवार अर्श से फर्श पर आ गया। बैंक खाते फ्रीज से लेकर संपत्ति बिक्री पर रोक ने तो उसके परिवार को सड़क पर ला दिया।ब्रजेश, रवि व विकास की तिकड़ी22 लड़कियों के दर्ज बयान रोंगटे खड़े करने वाले हैं। अधिकतर लड़कियों ने आरोपित मीनू, चंदा और किरण को नशे की दवा खिलाने के लिए कुख्यात बताया। लड़कियों को रात में नशीली दवा खिलाई जाती थी। एक लड़की ने कहा कि दवा खाने के बाद होश नहीं रहता था। सुबह में कपड़े खुले होते थे। उसके साथ क्या हुआ, यह पता नहीं चलता था। बालिका गृह में ब्रजेश, तत्कालीन बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन और बाल कल्याण समिति के सदस्य विकास कुमार की तिकड़ी की चलती थी। ये लड़कियों को हवस का शिकार बनाते थे। हेड सर का भय दिखाकर चुप करा दिया जाता था।'कोशिश' से हुआ भंडाफोड़
लड़कियों की सिसकियां ब्रजेश के राजनीतिक रसूख की धमक में दब जाती थीं। ऊंची पहुंच से इंसाफ नहीं मिलता था। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस मुंबई की 'कोशिश' ने शोषण को उजागर किया। इसके बाद भी हेडक्वार्टर स्तर के अफसर कार्रवाई से कतराते रहे। हालांकि, समाज कल्याण विभाग के निदेशक ने 'कोशिश' द्वारा उपलब्ध कराए गए सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट जिला बाल संरक्षण इकाई को देते हुए 15 दिनों में कार्रवाई का आदेश दिया था।