प्रकाश पादुकोण सैयद मोदी एचएस प्रणय ज्वाला गुट्टा और लक्ष्य सेन कभी आए थे पटना 10 से 15 वर्ष का समय लगता है एक खिलाड़ी को अंतरराष्ट्रीयस्तर का शटलर बनाने में

पटना ब्‍यूरो। अंतरराष्ट्रीय शटलर पीवी सिंधु और साइना नेहवाल जहां चैंपियन बन आशांवित हुई, उस शहर में शटल याननी चिड़िया उड़ान नहीं भर पा रही हैं, पर छत और सड़क पर बैडमिंटन लिए युवा दिख जाते हैं। बात जब पेशेवर खेल की आती है, तो पटना में एक भी सरकारी बैडमिंटन कोर्ट नहीं है। राजधानी में निजी अकादमी भी ढूंढे नहीं मिलेगी। यह तब है, जब ज्वाला गुट्टा, लक्ष्य सेन, एचएस प्रणय, प्रकाश पादुकोण और सैयद मोदी जैसे नामी खिलाड़ी कभी पटना में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लेने आए थे।

साइना नेहवाल ने जीता था पहला चैंपियनशिप
राजेंद्र नगर स्थित शारीरिक शिक्षण संस्थान की सरकारी बैडमिंटन अकादमी अब बिहार व पटना बैडमिंटन एसोसिएशन के सहयोग से चलती है। यहां कभी साइना नेहवाल जूनियर नेशनल चैंपियन बनीं थी। सचिवाल परिसर में आज मात्र तीन घंटे के लिए चलने वालीं अकादमी में माता—पिता की मौजूदगी में पीवी सिंधू ने राष्ट्रीय प्रतियोगिता का विजेता बनने का गौरव हासिल किया था। एक दौर ऐसा भी था कि गोलघर में प्रकाश पादुकोषण और बांकीपुर क्लब में टेंट लगाकर हुई आल इंडिया प्रतियोगिता में सैयद मोदी शामिल हुए। तो फिजिकल कॉलेज में आयोजित चैंपियनशिप में एचएस प्रणय ने लक्ष्य सेन को हराया था।

बरसात में खेल हो जाता है बंद
राजेंद्र नगर स्थित फिजिकल कॉलेज के इंडोर हॉल में स्थित बैडमिंटन कोर्ट की स्थिति मानक के अनुरूप नहीं रही। लेकिन खिलाड़ियों व कोच के सहयोग से टूर्नामेंट को प्रैक्टिस के योग बनाकर रखा गया है। लेकिन बारिश के दिनों में यहां भी खेल बंद हो जाता है। शेड से जहां पानी टपकता है। वहीं कॉलेज परिसर में पानी भर जाने के कारण देर माह तक खेल बंद हो जाता है। इतना ही नहीं वर्तमान में तो बाहरी परिसर में पानी व किचड़ होने की वजह से खिलाड़ियों को आवागमन में काफी दिक्कत हो रही है।

फटे जूते पहन प्रतियोगिता में शामिल होते हैं खिलाड़ी
बिहार बैडमिंटन संघ के सचिव केएन जायसवाल कहते हैं कि एक खिलाड़ी पर 10 से 15 वर्ष का समय दिया जाए, तब वह अंतरराष्ट्रीयस्तर पर चमक सकता है। राजधानी में एक भी सरकारी कोर्ट न होना किसकी लापरवाही है ? बिहार के खिलाड़ी फटे जूते पहनकर प्रतियोगिता में शामिल हो रहे हैं। संघ और सरकार के बीच गैप है। चरित्र निर्माण के लिए शिक्षा के साथ खेल को भी जोड़ना चाहिए। सुविधा के अभाव में शटलर बाहर जा रहे, जो यहां दो हजार खर्च नहीं करते, वह दूसरे राज्य में 25 हजार दे रहे हैं। अपने राज्य के अनुभ्ज्ञवी खिलाड़ियों को दरकिनार कर नामी लोगों को खेल की बेहतरी के लिए लाया जा रहा है। उनका क्या योगदान है, यह देखने की जरूरत है।

25 खिलाड़ियों को तीन घंटे के लिए मिलता समय
बिहार की प्रतिभाओं की बात करें तो ईस्ट जोन की तीन बार हमारी टीम विजेता रही है। टीम के सदस्य अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी व भारतीय टीम के कोच रहे नीरज कुमार बताते हैं कि सचिवालय में पूरे दिन करीब 25 खिलाड़ियों को मात्र तीन घंटे अभ्यास के लिए मिलते हैं। एक शटलर को एक दिन में तीन समय अभ्यास की जरूरत है। एक शटल 200 रुपये की आती है। एक खिलाड़ी को कम से कम एक दिन में दो की तो जरूरत है। अभिभावकों के लिए इतना वहन करना मुश्किल है।

अंतरराष्ट्रीयस्तर पर दे सकते है खिलाड़ी ?
कोच संदीप कुमार बताते हैं कि शरीरिक शिक्षा में सहयोग से जैसे—तैसे बैडमिंटन प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पहले जैसा माहौल नहीं हैं। कोच और पैसा नहीं है। युवा खेलना शुरू करें तो आगे नहीं बढ़ सकते। यदि बिहार के प्रतिभा की बात करें तो अंडर—11 में सक्षम वत्स और नौ व 11 आयु वर्ग में श्रीजा चैंपियन बन सकती हैं, तो अंतरराष्ट्रीयस्तर पर हम खिलाड़ी क्यों नहीं दे सकते ? रितेश रंजन जैसे कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं। यह सीधे तौर पर दर्शाता है कि सुविधा की कमी है, प्रतिभा की नहीं।

आठ रैंकिंग टूर्नामेंट कराने वाला रहा है बिहार
बिहार बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव केएन जायसवाल का कहना है कि आज संघों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। बैडमिंटन संघ की बात करें तो राज्य के एकमात्र ऐसा संघ है जो बिना किसी सरकारी सहायता के शटलरों को रैकेट, किट या टूर्नामेंट का खर्च उठाता है। इतना ही नहीं उपलब्धियों में बिहार लगातार आठ साल तक नेशनल रैकिंग टूर्नामेंट की मेजबानी की। वहीं सात नेशनल टूर्नामेंट कराने का श्रेय है। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की बात करें तो संदीप गांगुली, आकाश ठाकुर, शुभम को भुलाया नहीं जा सकता।

वर्जन
बैडमिंटन आज के समय में लोकप्रिय खेल है लेकिन एक भी राष्ट्रीय—अंतरराष्ट्रीय मानक तय करने वाले कोर्ट नहीं होने से बिहार के शटलरों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्राधिकरण बाहर के प्लेयर्स को बुलाकर लाखों खर्च करता है लेकिन अपने प्लेयर्स व कोच के प्रति ध्यान नहीं दिया जा रहा। पाटलीपुत्रा स्पोटर्स कॉम्प्लेक्स बैडमिंटन कोर्ट की बात करें तो बहुउद्देशीय हॉल होने के कारण प्रतियोगिता या प्रैक्टिस वहां बहुत मुश्किल से हो पाता है।
—केएन जायसवाल, सचिव, बिहार बैडमिंटन संघ

Posted By: Inextlive