PATNA NEWS -गंगा स्नान के बाद भक्तों ने श्रीहरि विष्णु के साथ की पीपल वृक्ष की पूजा
पटना ब्यूरो। सोमवती अमावस्या का पर्व ग्रह-गोचरों के शुभ संयोग में सोमवार को मनाया गया। पीपल वृक्ष की पूजा के बाद परिक्रमा, श्रीहरि विष्णु का पूजन एवं मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। अमावस्या पर स्नान-दान के साथ पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान किया गया। अहले सुबह से ही गंगा स्नान करने के लिए सनातन धर्मावलंबी गंगा के कई प्रमुख घाटों पर पहुंचने लगे थे। सुहागिन महिलाओं ने अखंड सुहाग की कामना कीे एवं पारिवारिक कुशलता के लिए सोमवार को शिव-पार्वती के साथ पीपल की विधिवत पूजन के बाद 108 परिक्रमा किया।
-सुखद वैवाहिक जीवन के लिए किए पूजा अर्चना
सोमवती अमावस्या पर सोमवार को मघा नक्षत्र व शिव योग की साक्षी में मनायी गई। इस दिन सूर्य व चन्द्रमा के सिंह राशि में विद्यमान होने स इसकी महत्ता और बढ़ गई थी। 12 साल के अंतराल के बाद बृहस्पति के केंद्र त्रिकोण में सोमवती अमावस्या का पर्व मनाया गया। आचार्य राकेश झा ने बताया कि पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में शिव व ऊपरी भाग में ब्रह्मा का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा से अक्षय पुण्य, सौभाग्य, सुखद वैवाहिक जीवन, पारिवारिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
-कुश उखाडऩे की अनोखी परंपरापंडित गजाधर झा ने बताया भाद्रपद अमावस्या यानि कुशी अमावस्या को सनातन धर्मावलंबियों द्वारा वर्षभर देवकार्य एवं पितृकर्म में उपयोग हेतु कुश उखाड़ा गया। कुश उखाडऩे की यह अनोखी परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। कुश का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्रता व शांति के लिए किया जाता है। यह परंपरा हमें हमारे धर्म व संस्कृति से जोड़ती है। यह केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि हमारे सामाजिक व सांस्कृतिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। कुश उखाडऩे की यह परंपरा हमारे समाज की धरोहर है, जिसे संजोना और संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।
-1100 महिलाओं ने अखंड सुहाग के लिए किया मंगलपाठ
भादो बदी अमावस्या के अवसर पर तीन दिवसीय महोत्सव के दूसरे दिन दादीजी मंदिर में से कार्यक्रम आयोजित किया गया। मौके पर मुख्य संस्थापक अमर अग्रवाल ने बताया कि लाल, पीली चुनड़ी में सजी 1100 महिलाओं ने अखंड सुहाग के लिए सामूहिक रूप से मंगलपाठ कर दादीजी से आशीर्वाद मांगा। कार्यक्रम में यजमान के रूप में जय प्रकाश तोदी एवं कविता तोदी ने पूजा किया। इस अवसर पर मन्दिर परिसर को रंग-बिरंगी देशी एवं विदेशी फूलों से सजाया गया था, जो देखने में काफी सुंदर लग रहे थे। चारों तरफ का माहौल राजस्थानी संस्कृति में रचा बसा नजर आ रहा था।