बड़े अफसरों पर करप्शन के आरोपों से दागदार होती खाकी, यकीन न हो तो पढ़ लें ये मामले
- बीते एक दशक के दौरान कई बड़े अफसरों पर लग चुके हैं गंभीर आरोप
- दो पूर्व डीजीपी भी आ चुके हैं जांच के घेरे में, बाद में मामला हुआ डंप
- जांच के नाम पर मिटा दिए जाते हैं प्रमाण, मातहतों पर ही गिरती है गाज
अफसरों के लिए साख का सवाल बन गया
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LUCKNOW : पुलिस महकमे के बड़े अफसरों पर करप्शन के आरोप लगना कोई नई बात नहीं है। पिछले एक दशक के दौरान इस तरह के मामलों में वृद्धि भी देखी गयी है जिसमें मातहतों ने अपने सीनियर्स को ही आरोपों के कटघरे में खड़ा कर दिया।करप्शन के आरोपों से खाकी के दागदार होने का सबसे बड़ा मामला पूर्ववर्ती सपा सरकार में आया था जब एक दलाल शैलेंद्र अग्रवाल को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसकी कॉल डिटेल खंगालने पर सूबे के दो पूर्व डीजीपी का नाम सामने आया तो यह मामला आईपीएस अफसरों के लिए साख का सवाल बन गया। आईपीएस धर्मेंद्र यादव ने तो बाकायदा एसोसिएशन को पत्र लिखकर दोनों डीजीपी को बेनकाब करने की मांग तक कर डाली थी।
डीआईजी जेल ने आईजी पर लगाए थे आरोप
इसी तरह बसपा शासनकाल में जेल महकमे के डीआईजी डीडी मिश्रा ने अपने आईजी पर ही रिश्वतखोरी का आरोप लगा दिया था। बाद में उन्हें बीमार बताते हुए इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कवायद भी की गयी। वहीं राज्य सरकार ने डीआईजी के खिलाफ ही अनुशासनात्मक जांच शुरू कर दी। वहीं साल भर बाद सूबे में सपा की सरकार बनने पर एसी शर्मा को डीजीपी बनाया गया तो एक नये विवाद ने जन्म ले लिया। डिप्टी एसपी वीके शर्मा ने उन पर मुंहमांगी जगह तैनाती के एवज में घूस मांगने का आरोप लगा दिया।
ब्रांच को ही भंग करने की नौबत आ गयी
हालांकि बाद में वीके शर्मा को ही इसका खामियाजा भुगतने की नौबत आन पड़ी। यह मामला भी बड़े अफसरों पर लगने वाले आरोपों के बाद होने वाली पक्षपातपूर्ण कार्यवाही का जीता-जागता उदाहरण है। हाल ही में रिश्वतखोरी को लेकर लगने वाले आरोपों में बढ़ोतरी भी दर्ज की गयी है। बाराबंकी में एक सिपाही ने एसपी पर ही थानों में तैनाती के लिए रिश्वत मांगने का आरोप लगा दिया तो नोएडा में तो सिपाही ने रिश्वत का रेट कार्ड ही जारी कर दिया। इसके बाद नोएडा क्राइम ब्रांच को ही भंग करने की नौबत आ गयी।
बंद करना पड़ा आउट ऑफ टर्न
रिश्वतखोरी के इन्हीं आरोपों की वजह से राज्य सरकार ने सालों से चली आ रही आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की परंपरा को ही समाप्त कर दिया था। दरअसल आउट ऑफ टर्न के नाम पर बड़े अफसरों द्वारा लाखों रुपये लेने की शिकायतें आम होने लगी थीं। वही सही दावेदारों की जगह पैसा लेकर उन पुलिसकर्मियों को प्रमोशन दिया जाने लगा जिनकी ऑपरेशन में कोई खास भूमिका नहीं थी। इसे लेकर तमाम पुलिसकर्मियों ने अदालत की शरण लेना शुरू किया तो राज्य सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करना पड़ गया। नतीजतन सपा सरकार ने आउट ऑफ प्रमोशन की परंपरा को ही समाप्त कर दिया।
नहीं पकड़ा जाता कोई अफसर
रिश्वतखोरी के तमाम आरोपों के बावजूद पुलिस महकमे के किसी भी राजपत्रित अधिकारी को पिछले कई सालों से कानून के शिकंजे में नहीं लिया जा सका है। दरअसल इसकी एक बड़ी वजह है। सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली विजिलेंस और एंटी करप्शन यूनिट को उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए पहले शासन की अनुमति लेनी जरूरी है। तमाम मामलों में या तो अनुमति मिलती नहीं है या फिर इसमें देरी से उन्हें ट्रैप करने का मौका हाथ से निकल जाता है।
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