एनसीईआरटी ने अपने नए पाठ्यक्रम में कई बड़े बदलाव किये हैं। एनसीईआरटी की कक्षा 6 की सामाजिक विषय की पुस्तक में काफी कुछ नया देखने को मिला है। पुस्तक में अब जाति व्यवस्था का उल्लेख नहीं है। इस पुस्तक में अब सांची स्तूपमहाबलीपुरम के मंदिरों और अजंता की गुफाओं में बने चित्रों का भी उल्लेख नहीं है। यहां जानें और क्या बदला है...


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की नई बुक में काफी कुछ बदला है। नई बुक के अनुसार ग्रीनविच मध्याह्न रेखा से पहले भारत में प्रधान मध्याह्न रेखा गुजरती थी ,जिसे मध्य रेखा कहते हैं।यह मध्य रेखा भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन से होकर जाती है। इसके साथ ही पुस्तक में जाति के आधार पर होने वाले भेदभावों से सम्बन्धित पाठों को भी हटा दिया गया है और हड़प्पा सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता के रूप में बताया गया है,जो कि एक बड़ा बदलाव है।खगोल विज्ञान का बड़ा केन्द्र-उज्जैननई एनसीईआरटी में उज्जैन को खगोल विज्ञान का बड़ा केन्द्र बताया गया है। पुस्तक में बताया गया है कि महान भारतीय खगोलशास्त्री वराहमिहिर 1500 वर्ष पहले उज्जैन में ही रहा करते थे। भारतीय खगोलशास्त्री अक्षांश और देशान्तर रेखाओं से भलीभांति परिचित थे,जिसमें शून्य या मध्याह्न रेखा की अवधारणा प्रमुख है।


हड़प्पा है अब सिंधु सरस्वती सभ्यताइस पुस्तक में सरस्वती नदी का उल्लेख जगह जगह पर है और हड़प्पा सभ्यता का उल्लेख सिंधु-सरस्वती सभ्यता के रूप में किया गया है। पुस्तक में कहा गया है कि सरस्वती बेसिन में राखीगढ़ और गंवरीवाला जैसी सभ्यता के प्रमुख शहरों के साथ साथ छोटे शहर के कस्बे भी शामिल थे।

जाति व्यवस्था को नहीं मिली जगहनई पुस्तक में बताया गया है कि सरस्वती नदी आज भारत में घग्गर और पाकिस्तान में हकरा के नाम से जानी जाती है और यह एक मौसमी नदी है। पुस्तक के एक पाठ में जाति व्यवस्था के बिना वेदों का उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि महिलाओं और शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था।पिछले पाठ्यक्रम से कितना अलगनई पुस्तक में बताया गया है कि वैदिक ग्रंथों में कई व्यवसायों का उल्लेख किया गया है ,जैसे किसान,बुनकर,नाई,पुजारी,बढ़ई,चिकित्सक आदि जबकि पिछली पुस्तक में कहा गया था कि कुछ पुजारियों ने लोगों को चार समूहों में विभाजित कर दिया था,जिसे वर्ण कहा जाता है।इसके साथ ही पुस्तक में बताया गया है कि महिलाओं और शूद्रों को वेदों के अध्ययन की अनुमति नहीं थी और शूद्र किसी तरह का अनुष्ठान भी नहीं कर सकते थे।नई बुक में कोविड 19 से जुड़े पाठों को भी बदल दिया गया है जिसे पहले एनसीईआरटी ने अस्थायी रूप से हटाया था ।चार अध्यायों को नहीं मिली जगह

नई एनसीईआरटी में पुरानी पुस्तक के चार पाठों को हटा दिया गया है। इन पाठों में अशोक,चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यों के विवरण से सम्बन्धित पाठों को हटा दिया गया है। इसके साथ ही इनमें चाणक्य और उनके अर्थशास्त्र के साथ साथ गुप्त,पल्लव और चालुक्य वंशों एवं कालिदास के कार्यों को भी जगह नहीं मिली है।लौह स्तम्भ का भी नहीं जिक्रएनसीईआरटी की इस पुस्तक में दिल्ली में कुतुबमीनार स्थल पर स्थित प्रसिद्ध लौह स्तम्भ का भी जिक्र नहीं किया गया है। इसके साथ ही सांची स्तूप ,महाबलीपुरम के मंदिरों और अजंता की गुफाओं के चित्रों को भी पुस्तक में जगह नहीं दी गई है।क्या बोले एनसीईआरटी के निदेशक नई पाठ्यपुस्तक के परिचय में एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने लिखा है,हमने बड़े विचारों पर ध्यान केंद्रित करके पाठों को न्यूनतम रखने की कोशिश की है। इससे हम कई विषयों से एक ही विषय में इनपुट इकठ्ठा करने में सक्षम हुए हैं।

Posted By: Inextlive Desk