गुजरात में अपने विधायकों को बीजेपी में जाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने उन्हें शनिवार को बेंगलुरु पहुंचा दिया। ये कर्नाटक के लोगों के लिए कोई हैरानी की बात नहीं है। बेंगलुरु साइंस या आईटी सेक्टर के लिए ही भारतीय राजधानी के रूप में मशहूर नहीं है। देश में रेजॉर्ट पॉलिटिक्स में भी इसकी काफी ख्याति रही है। कांग्रेस ने यह कदम तब उठाया जब उसके छह विधायकों ने पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया। इसके झटके के बाद हरकत में आई कांग्रेस पार्टी ने अहमदाबाद और राजकोट से अपने बाकी बचे 40 विधायकों को निजी एयरलाइन से बेंगलुरु पहुंचा दिया।


अहमद पटेल पर संकटकांग्रेस के जिस उम्मीदवार पर संकट है वो पार्टी मुखिया सोनिया गांधी और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बाद तीसरे नंबर की हैसियत रखते हैं। वो शख्स हैं, अहमद पटेल। जो कांग्रेस अध्यक्षा के राजनीतिक सलाहकार हैं। पटेल राज्यसभा के लिए पांचवीं बार चुनाव में उतरे हैं। जीतने के लिए उन्हें 182 सदस्यों वाली विधानसभा में 46 वोट चाहिए। मगर, पार्टी की ताकत 58 से घटकर कम हो गई है। अभी और विधायकों के साथ छोडऩे की शंका कायम है। नायडू से हुई थी शुरुआत धनानी, दूसरी खेप में नौ विधायकों को राजकोट से यहां पहुंचे थे।
उन्होंने इनोवा कारों में विधायकों को स्थानीय मेजबानों के करीबी समर्थकों के साथ बैठाने के बाद बीबीसी को बताया। पहली खेप में 31 विधायकों को एयरपोर्ट से रेजॉर्ट तक बस में खुद सुरेश लेकर पहुंचे। ऐसे हालात में आम तौर पर बस का ही इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इस तरह की बसें, एस्कॉट्र्स, पैसा और सत्ता दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है और इसे कर्नाटक में रेजॉर्ट पॉलिटिक्स कहा जाता है। इसकी शुरुआत पहली बार जुलाई 1984 में हुई, जब तेलगू देशम पार्टी के विधायकों से भरी बसें हैदराबाद से बेंगलुरु पहुंचीं।


10 साल पहले गुजरात था सुर्खियों मेंइसके एक साल बाद जून 1996 में खुद गुजरात इसका गवाह बना और विधायकों को वहां से राजस्थान ले जाया गया था। इसके केंद्र में तब शंकरसिंह वाघेला थे। फिर से मौजूदा घटनाक्रम के केंद्र में वही हैं। वाघेला चाहते थे कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे। इसके बाद उनके समर्थक कांग्रेस छोड़कर जाने लगे। वाघेला ने उम्मीदवार न बनाए जाने के लिए अहमद पटेल को जि़म्मेदार ठहराया। वाघेला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के खिलाफ इसी तरह का मोर्चा खोला था। तब उन्होंने अपने समर्थकों को खजुराहो पहुंचा दिया। उनके ग्रुप को तब खजुरिया के रूप में पहचान मिली। केशूभाई पटेल के ग्रुप को हुज़ूरिया का नाम मिला। क्योंकि इस ग्रुप को राजस्थान ले जाया गया था। महाराष्ट्र और कर्नाटक संकट

बेंगलुरु फिर से तब रेजॉर्ट पॉलिटिक्स के लिए सुर्खियों में आया जब 2002 में विलासराव देशममुख सरकार बचाने के लिए विधायकों को महाराष्ट्र से बेंगलुरु पहुंचाया गया। चार साल बाद ऐसा ही नजारा फिर सामने आया। जब कर्नाटक में धरम सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल एस और कांग्रेस की पहली गठबंधन सरकार को एचडी कुमारस्वामी ने गिरा दिया था। धरम सिंह की अभी दो दिन पहले ही मौत हो गई। राजभवन में राज्यपाल के सामने विधायकों को परेड कराने से पहले वो उन्हें एक रेजॉर्ट में ले गए लेकिन रेजॉर्ट पॉलिटिक्स तब राजनीतिक शब्दावली में शुमार हुआ जब कुमारस्वामी और बीजेपी के बीएस येद्दयुरप्पा ने जब भी राजनीतिक संकट पैदा होता था, विधायकों और समर्थकों को रेजॉर्ट में ले जाने का चलन बना दिया। दक्षिण भारत के सभी राज्यों में इस तरह के पर्यटन को धार्मिक दर्शन में बदल देने का श्रेय कुमारस्वामी को जाता है। येदियुरप्पा मास्टर येदियुरप्पा के लिए तो रेजॉर्ट पॉलिटिक्स ने दो तरह से काम किया। पहली बार तत्कालीन मंत्री और खनन कारोबारी जनार्दन रेड्डी ने उन्हें हटाने की कोशिश की और विधायकों को लेकर गोवा चले गए। येदियुरप्पा ने रेजॉर्ट पॉलिटिक्स को जितनी बार इस्तेमाल किया उतना शायद ही किसी नेता ने किया हो। दूसरी बार ये 2010 में तब हुआ जब विश्वास मत हासिल करना था। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा, जोकि वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं, को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए उन्होंने ये तरीक़ा इस्तेमाल किया।

Interesting News inextlive from Interesting News Desk

Posted By: Prabha Punj Mishra