Basant Panchami 2022 Poem : बसंत पंचमी पर पढ़ें ये 5 लोकप्रिय कविताएं, मशहूर कवियों के बसंत पर अहसास
कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Basant Panchami 2022 : 'बसंत ऋतु' में प्रकृति का एक नया रूप देखने को मिलता है। इसीलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहते हैं। बसंत की शुुरुआत माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी यानी कि बसंत पंचमी के दिन से होती है। इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 5 फरवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन स्कूलों व कॉलेजों में सरस्वती पूजन के साथ विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसमें बसंत से जुड़ी कविताएं आदि सुनाई जाती है। ऐसे में आज यहां पढ़ें देश के प्रसिद्ध कवियों की बसंत पर विशेष रचनाएं व अहसास...
बसंत पर सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार।
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो बसंत
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग।
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो बसंत
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान।
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो बसंत गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण।
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो बसंत
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग।
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का कैसा हो बसंत
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड।
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो बसंत भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं।
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो बसंत
बसंत पर सुमित्रानंदन पंत की कविता
उस फैली हरियाली में,
कौन अकेली खेल रही मा!
वह अपनी वय-बाली में?
सजा हृदय की थाली में-- क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता,
मोद, मधुरिमा, हास, विलास,
लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय,
स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास!
ऊषा की मृदु-लाली में--
किसका पूजन करती पल पल
बाल-चपलता से अपनी?
मृदु-कोमलता से वह अपनी,
सहज-सरलता से अपनी?
मधुऋतु की तरु-डाली में-- रूप, रंग, रज, सुरभि, मधुर-मधु,
भर कर मुकुलित अंगों में
मा! क्या तुम्हें रिझाती है वह?
खिल खिल बाल-उमंगों में,
हिल मिल हृदय-तरंगों में!
बसंत पर सोहन लाल द्विवेदी की कविता
आया बसंत आया बसंत
छाई जग में शोभा अनंत। सरसों खेतों में उठी फूल
बौरें आमों में उठीं झूल
बेलों में फूले नये फूल
पल में पतझड़ का हुआ अंत
आया बसंत आया बसंत।
हरियाली छाई है बन बन,
सुंदर लगता है घर आंगन है आज मधुर सब दिग दिगंत
आया बसंत आया बसंत। भौरे गाते हैं नया गान,
कोकिला छेड़ती कुहू तान
हैं सब जीवों के सुखी प्राण, इस सुख का हो अब नही अंत
घर-घर में छाये नित बसंत।
बसंत पर गोपालदास नीरज की कविता
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना! धूप बिछाए फूल-बिछौना,
बगिय़ा पहने चांदी-सोना,
कलियां फेंके जादू-टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना! बौराई अंबवा की डाली,
गदराई गेहूं की बाली,
सरसों खड़ी बजाए ताली,
झूम रहे जल-पात,
शयन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना। खिड़की खोल चंद्रमा झांके,
चुनरी खींच सितारे टांके,
मन करूं तो शोर मचाके,
कोयलिया अनखात,
गहन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना। नींदिया बैरिन सुधि बिसराई,
सेज निगोड़ी करे ढिठाई,
तान मारे सौत जुन्हाई,
रह-रह प्राण पिरात,
चुभन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
यह पीली चूनर, यह चादर,
यह सुंदर छवि, यह रस-गागर,
जनम-मरण की यह रज-कांवर,
सब भू की सौगा़त,
गगन की बात न करना!
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।