बैंकों ने जितना डुबाया उतने में देश उबर जाता
इंडिया स्पेंड के एक विश्लेषण के मुताबिक़ यह फंसा हुए कर्ज़ - जिसे बैंकिंग की भाषा में नॉन-पर्फामिंग असेट्स (एनपीए) कहा जाता है, 4।04 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। अगर मार्च 2011 के स्तर से तुलना करें तो 450% की बढ़ोतरी।प्राइवेट क्षेत्र के बैंकों में भी एनपीए की समस्या है लेकिन उनके फंसे हुए कर्ज़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले आधे हैं, जो कुल कर्ज़ का 73% है।इंडिया स्पेंड बार-बार कहता रहा है कि भारतीय बैंकिंग का एनपीए उनकी कुल पूंजी से अधिक हो गया है।संपादक और स्तंभकार टीएन नैनन ने हाल ही में बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार में लिखा कि इससे नए व्यावसायों के लिए कर्ज़ देने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई है। इन फंसे हुए कर्ज़ों का बोझ अंततः भारतीय करदाता पर ही पड़ता है, जो सरकार के नियंत्रण वाले सरकारी बैंकों के अंतिम गारंटर हैं।
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के दिए कुल कर्ज़, जो करीब 8 लाख करोड़ रुपए है, का एनपीए और पुनर्गठित पूंजी का संयुक्त स्तर 14 फ़ीसद है - या सात में एक रुपया है। जोखिम में आई यह राशि ओमान, श्रीलंका और म्यांमार के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से ज़्यादा है।
अगस्त 2015 में जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह संदेश दिया कि घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है, तब उनके लिए भी यह एक बड़ी समस्या हो गई थी।सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने वित्त वर्ष की कई चौथाई में इस समस्या पर क़ाबू पाने कोशिश की।पिछले साल के बजट से ठीक पहले जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 में बढ़ते एनपीए को एक बड़ी समस्या माना गया और आरबीआई को इस पर क़ाबू पाने के प्रयास करने को कहा गया, जिनमें फंसे हुए कर्ज़ों की सूचना देने के लिए सख़्त दिशा-निर्देश भी शामिल थे।सूचना देने का सख़्त दिशा-निर्देश भी एनपीए के बढ़ते स्तर के लिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि पहले जिन कर्ज़ों को अकाउंट स्टेटमेंट में ज़ाहिर नहीं किया जाता था उन्हें भी फंसे हुए कर्ज़ों की तरह दिखाया जाने लगा।आरबीआई कर्ज़ों के फंस जाने की तीन वजहें बताता है - वास्तविक व्यावसायिक वजहें, ग़लत व्यावसायिक फ़ैसले और अक्षमता और ख़राब प्रबंधन।
कुछ मामलों में भूमि-अधिग्रहण विवाद, स्थानीय स्तर पर विरोध या पर्यावरणीय अनुमति के चलते परियोजनाएं अटक गई हैं। यह विशेषकर पनबिजली क्षेत्र में हुआ है, जिसकी करीब सभी परियोजनाएं समय से पीछे चल रही हैं।बहुत से फंसे हुए या समस्याग्रस्त कर्ज़ कुप्रबंधन और शायद व्यावसाय से अतिरिक्त उम्मीद का परिणाम होते हैं, जैसे कि विजय माल्या की निष्क्रिय किंगफ़िशर एयरलाइन्स, जिसे बैंकों के 4,000 करोड़ रुपए देने हैं।
निजी क्षेत्र के बैंकों के भी कर्ज़ फंसते हैं लेकिन उनकी समस्या सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुकाबले बहुत कम है। फंसे हुए कर्ज़ों के मामले में सबसे ख़राब स्थिति वाले निजी बैंक भी सबसे अच्छी स्थिति वाले सरकारी बैंकों से बेहतर हालत में हैं।