आनंद एल राय मीडिल क्लास विषयों को लेकर फिल्में बनाने में माहिर रहे हैं। उनकी फिल्मों में प्रेम कहानी जज्बात के साथ-साथ हास्य पुट भी होता है। इस बार वह एक अतरंगी कहानी लेकर आये हैं। एक लड़की है वह बार-बार घर से भागती है। उसकी जिंदगी में दो मर्द आते हैं विशु और सज्जाद। आगे क्या होता है। क्या यह प्रेम कहानी हैप्पी एंडिंग ला पाती है। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। आनंद की इस फिल्म में उनकी आत्मा मिसिंग है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण मेंटल हेल्थ विषय को उठाया जरूर है लेकिन वे विषय से अच्छे से डील नहीं कर पाए हैं। जबरदस्ती की डायलॉगबाजी सारा अली का अति उत्साही अभिनय और कमजोर स्क्रीन प्ले के कारण फिल्म वह प्रभाव नहीं छोड़ पाती है जो फिल्म के ट्रेलर से उम्मीद जगी थी। पढ़ें पूरा रिव्यु

फिल्म : अतरंगी रे
कलाकार : अक्षय कुमार, सारा अली खान, धनुष, सीमा विस्वास
निर्देशक : आनंद एल राय
चैनल : डिज्नी प्लस हॉटस्टार
रेटिंग : ढाई स्टार

क्या है कहानी
एक अनोखी प्रेम कहानी है। एक लड़की है रिंकू सूर्यवंशी , वह हर बार घर से भाग निकलती है, अपने बॉय फ्रेंड के साथ। लेकिन वह आशिक कौन है। किसी को नहीं पता। कहानी बिहार के सिवान जिला की है। रिंकू के नानी परेशान हैं, रिंकू से। वह उसकी बस शादी कर देना चाहती हैं। फिर चाहे लड़का कोई भी हो। पकड़वा शादी के तहत एक तमिलियन लड़के विशु को फंसाया जाता है और उसके गले में रिंकू की माला डाल दी जाती है। लेकिन कहानी में बड़ा ट्विस्ट यहाँ आता है कि बेचारे विशु की तो चेन्नई में सगाई होने वाली है। वहां रिंकू के साथ विशु पहुँचता है। घर वालों के सामने सच आता है और फिर सगाई टूट जाती है। अबतक कहानी में कोई ट्विस्ट नहीं है। लेकिन यहाँ से कहानी में ट्विस्ट आने शुरू होते हैं। विशु को पता चलता है, रिंकू सज्जाद नाम के किसी आदमी से प्यार करती है। विशु के मन में तो रिंकू के लिए प्यार आता है। लेकिन रिंकू क्या विशु को चुन पाती है, या सज्जाद को। यह आपको फिल्म देखने के बाद पता चलाएगा। फिल्म में एक सस्पेंस है। फिल्म में एक अच्छा सवाल है कि क्या एक लड़की एक साथ दो मर्दों से प्यार नहीं कर सकती है। लेकिन फिल्म का जो पूरा ट्रीटमेंट है, वह अपनी इस बात से भटक जाता
है। कई तरह के कंफ्यूजन क्रिएट करता है।

क्या है अच्छा
कहानी का मूल अनोखा है, एक अलग मिजाज की प्रेम कहानी दिखाने की कोशिश है निर्देशक की।

क्या है बुरा
निर्देशक और लेखक खुद ही अपनी कहानी को लेकर कन्फ्यूज हो गए हैं। फिल्म के अंतराल से पहले ही सबकुछ स्पष्ट हो जाता है। फिर फिल्म में बार-बार एक जैसे ही सीन बिल्ड आप आते हैं, नायिका का उतावलापन, जबरदस्ती के ठूसे हुए डायलॉग प्रभावित नहीं करते हैं। बिहारी ऐक्सेंट के चक्कर में दो भाषाओं का मिक्स अंदाज़ नजर आता है। आनंद एल राय जैसी फिल्मों का निर्माण करते रहे हैं, उनका वह टच इस फिल्म में नजर नहीं आया है।

अदाकारी
सारा अली खान के लिए यह बड़ा मौका था। उन्होंने कोशिश अच्छी भी की है, लेकिन कमजोर कहानी होने की वजह से, वह दृश्यों में रिपिटेटिव लगी हैं। फ्रेशनेस उनके काम में है। कुछ दृश्यों को उन्होंने बेहद खूबसूरती से हैंडल किया है। खासकर इमोशल दृश्यों को। लेकिन शेष फिल्म में उन पर बड़बोली अभिनेत्रियों की धुन सवार है, ऐसा नजर आता है। धनुष ने बहुत ही सहजता से अभिनय किया है। अक्षय कुमार अपने अंदाज में ही नजर आये हैं।

वर्डिक्ट
आनंद एल राय की फिल्मों वाली बात मिसिंग नजर आई है।

Review by: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari