बाड़मेर में प्यास बुझाते वॉटर एटीएम कार्ड
अतिवृष्टि ने इस रेगिस्तानी इलाक़े के गर्भ को जलप्लावित तो कर दिया था, पर खारा होने की वजह से लोग अभी भी प्यास बुझाने को तरस ही रहे थे.अब यहां के लोग न केवल मीठा पानी पी रहे हैं बल्कि समझदार भी हो गए हैं. अब उनके पास “वॉटर एटीएम कार्ड” जो है.यह छोटा सा गांव राजस्थान का पहला गांव है, जहां इस साल फरवरी से वॉटर एटीएम के ज़रिए लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है. एक सामुदायिक आरओ प्लांट से खारे पानी को पीने योग्य बनाया जाता है और लोगों को इस कार्ड से मीठा पानी आसानी से मिल जाता है.
कवास के बाद भीमदा, सवाऊ पदम सिंह, आकदड़ा और बायतू भोपजी के लोगों को भी वॉटर एटीएम की सुविधा मिल रही है. इन सभी गांवों में पानी में फ़्लोरोसिस की मात्रा बहुत अधिक है और आकदड़ा के कुओं का पानी तो है, जैसे खारा ज़हर.आने वाले दिनों में ज़िले के संतरा, कानोड़ और बाड़मेर मुख्यालय पर भी वॉटर एटीएम लगाए जाएंगे.वॉटर रिचार्ज "थार क्षेत्र में समुदाय की पहली ज़रूरत सुरक्षित पेयजल है. इस दिशा में हम लोगों की सक्रिय भागीदारी से एक दीर्घकालिक प्रभाव ला पा रहे हैं, इसकी हमें ख़ुशी है."-रितु झिंगन, सीएसआर मैनेजर
वॉटर एटीएम रेगिस्तान में एक दुर्लभ स्वप्न पूरा होने जैसा है. कार्ड को नल के पास ले जाओ और झट से पांच रुपए में 20 लीटर शुद्ध पानी पाओ. मोबाइल के रिचार्ज की तरह इस वॉटर एटीएम कार्ड को भी रिचार्ज कराया जा सकता है.
ग्रामवासियों को वॉटर स्मार्ट कार्ड लेने के लिए प्रेरित किया जाता है और वे एक बार में कार्ड स्वाइप कर 20 लीटर पानी ले सकते हैं. इसे अधिकतम 30 बार तक स्वाइप किया जा सकता है और उसके बाद इसे रिचार्ज करवाना पड़ता है.जो लोग 150 रुपए का यह कार्ड लेने के इच्छुक नहीं हैं, उनके लिए आरओ प्लांट्स से सीधे “होम डिलीवरी” की भी व्यवस्था है. इसके लिए सेल्समेन पांच रुपए की दर पर एक 20 लीटर का कैन भरकर पांच रुपए और लेकर यानी कुल 10 रुपए में घर तक पानी पहुंचाते हैं.
योजना के तहत उन गांवों का चयन किया गया है, जहां पानी में हानिकारक टीडीएस (कुल घुलनशील लवण) की मात्रा 2000 पीपीएम से अधिक है और कम से कम 50 फ़ीसदी आबादी खारा पानी पीने को मजबूर है.कवास सहित अन्य गांवों में लगे बड़े आरओ प्लांट से प्रति घंटे 1000 लीटर पानी पीने योग्य बनाया जाता है. ख़ास बात यह है कि इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया द्वारा करीब 90 प्रतिशत तक टीडीएस ख़त्म हो जाता है.जल शुद्धिकरण की प्रक्रिया में नियम के अनुसार 45 प्रतिशत पानी पीने योग्य माना जाता है. ऐसे में 55 प्रतिशत बिल्कुल बेकार जाने की संभावना रहती है, पर बाड़मेर के इन गांव में कई नई तकनीकों के उपयोग से इस पानी को खेती या ईंटें बनाने के काम में लिया जा रहा है.रेगिस्तानी क्षेत्रों में पानी की किल्लत रहती है और लोगों को अक्सर मीलों दूर पैदल चलकर पानी की तलाश में जाना पड़ता है. इतनी मशक्कत के बावजूद बहुत बार निराश लौटना पड़ता है और मीठा पानी नहीं मिल पाता. ऐसे में वॉटर एटीएम और आरओ प्लांट्स से मानो कुआं ही प्यासे के पास चला आया है.सुष्मिता सेन गुप्ता कहती हैं कि चूंकि वहां के पानी में टीडीएस की मात्रा बहुत अधिक है इसलिए अपशिष्ट जल की व्यवस्था में बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए.साथ ही वो जल संरक्षण के बारे में लोगों को जागरूक और प्रेरित करने पर भी ज़ोर देती हैं.