काम की भागदौड़ में कई बार इंसान डिप्रेशन का शिकार हो जाता है यानी वह मानसिक अवसाद में आ जाता है। ऐसा होना आम बात है लेकिन कई बार डिप्रेशन इतना अधिक बढ़ जाता है कि वह कुछ समय के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता है।

आज के दौर में जीवन में कभी न कभी हर व्यक्ति डिप्रेशन अर्थात अवसाद का शिकार हो ही जाता है। डिप्रेशन आज इतना आम हो चुका है कि लोग इसे बीमारी के तौर पर नहीं लेते और नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ऎसा करने का परिणाम कभी-कभी बहुत ही बुरा हो सकता है।

काम की भागदौड़ में कई बार इंसान डिप्रेशन का शिकार हो जाता है, यानी वह मानसिक अवसाद में आ जाता है। ऐसा होना आम बात है लेकिन कई बार डिप्रेशन इतना अधिक बढ़ जाता है कि वह कुछ समय के लिए अपनी सुध-बुध खो बैठता है। कुछ लोग डिप्रेशन के कारण पागलपन का भी शिकार हो जाते हैं।

अवसाद से बचने के आसान उपाय


1. व्यक्ति को चांदी के पात्र (गिलास आदि) में जल, शर्बत इत्यादि शीतल पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

2. सोमवार तथा पूर्णिमा की रात्रि को चावल, दूध, मिश्री, चंदन लकड़ी, चीनी, खीर, सफेद वस्त्र, चांदी इत्यादि वस्तुओं का दान करना चाहिए।

3. आशावादी बनें। प्रत्येक स्थिति में आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं। अपनी असफलताओं को नहीं वरन सफलताओं को याद करें।

4. हरे रंग का परित्याग करें।

5. चांदी में मंडवाकर गले में द्विमुखी रूद्राक्ष धारण करें, साथ ही नित्य प्रात: कच्चे दूध में सफेद चन्दन घिसकर मस्तक पर उसका तिलक करें।

6. कभी भी खाली न बैठें क्योंकि अगर आप खाली बैठेंगे तो मन को अपनी उड़ान भरने का समय मिलेगा, जिससे मन में बुरे विचार उत्पन होने लगेंगे।

7. हो सके तो सिद्ध पुरूषों के प्रवचन सुनें, व्यायाम-योग-ध्यान साधना इत्यादि विधियों को अपनाएं।

8. प्रतिदिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर तुलसी के पौधे की 11 परिक्रमा करें और घी का दीपक जलाएं। तुलसी के पौधे को जल चढ़ाएंं। यही प्रक्रिया शाम के समय भी करें। ऐसा करने से मानसिक अवसाद कम होगा। तुलसी की माला धारण करें तो और भी बेहतर लाभ मिलेगा।

9. अंगूठे और पहली उंगली यानी इंडैक्स फिंगर के पोरों को आपस में जोड़ने पर ज्ञान मुद्रा बनती है। इस मुद्रा को रोज दस मिनट करने से मस्तिष्क की दुर्बलता समाप्त हो जाती है। साधना में मन लगता है। ध्यान एकाग्रचित होता है।

10. ऊपर बताई गई मुद्रा के साथ यदि मंत्र का जाप किया जाय तो वह सिद्ध होता है। परमानन्द की प्राप्ति होती है। इसी मुद्रा के साथ ऋषियों, मनीषियों और तपस्वियों ने परम ज्ञान को प्राप्त किया था।

-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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Posted By: Kartikeya Tiwari