जो जैसा विचारता है, वैसा ही हो जाता है
गांधी जी सुबह पानी गर्म करके उसमें नींबू और शहद डालकर लेते थे। महादेव देसाई उनके निकट थे। एक दिन पानी में शहद और नींबू डालकर उन्होंने रखा। वह गर्म पानी था। उबलती हुई उससे भाप निकलती थी। जब गांधीजी आए, तो कोई पांच मिनट बाद उनको पीने को दिया। गांधीजी उसे दो क्षण देखते रहे और फिर उन्होंने कहा, 'अच्छा हुआ होता, इसे ढंक देते।'
महादेव देसाई ने कहा, 'पांच मिनट में क्या बिगड़ता है। और फिर मैं देख ही रहा हूं इसमें कुछ भी नहीं गिरा। ' गांधीजी ने कहा, 'कुछ गिरने का प्रश्न नहीं है। इससे गर्म भाप उठ रही है, कुछ न कुछ कीटाणुओं को व्यर्थ ही नुकसान पहुंचा होगा। कोई कारण न था, उसे हम बचा सकते थे।' जो अहिंसा पर निरंतर चिंतन कर रहा है, यह स्वाभाविक है कि उसको यह वृत्ति और बोध आ जाए। यानी मैं यह कह रहा हूं कि आप जब किन्हीं चीजों पर निरंतर चिंतन करेंगे, तो आप जीवनचर्या में छोटी-छोटी बातों में फर्क पाएंगे। यदि कोई यह कहता है, 'यह बहुत दुख की बात है कि बहुत से लोगों को हम दो बार कह चुके, फिर भी वे अभी तक नहीं आए हैं और दस मिनट की देर हो गई।' अगर मुझे यह बात कहनी पड़े, तो मैं यह कहूंगा, 'यह बहुत खुशी की बात है कि दो बार ही कहने से इतने लोग आ गए हैं। यह और भी ज्यादा खुशी की बात होगी कि जो नहीं आए हैं, वे भी आ जाएं।' यह अहिंसात्मक ढंग है और वह हिंसात्मक ढंग था। उसमें हिंसा है।
अगर आप विचार करेंगे, शुद्ध चिंतन के थोड़े से केंद्र बनाएंगे, तो आप पाएंगे कि आपकी छोटी-छोटी चीजों में अंतर पड़ना शुरू हो गया है। आपकी वाणी तक अहिंसक हो रही है। आपके चिंतन के केंद्र आपके जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। यह स्वाभाविक है। जो जैसा विचारता है, वैसा हो जाता है। विचार बड़ी अद्भुत शक्ति है। आप निरंतर क्या विचार कर रहे हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। अगर आप निरंतर धन के संबंध में विचार कर रहे हैं और समाधि के भी प्रयोग कर रहे हैं, तो दिशा विपरीत है। विचार की दिशा यदि शुद्ध होगी, तो आप पाएंगे कि छोटी चीजों में भी अंतर पड़ना शुरू हो गया है।जीवन बड़ी तथा छोटी, दोनों बातों से बनता है। जीवन बड़ी-छोटी घटनाओं से बनता है। आप कैसे उठते, बैठते, बोलते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर होता है। इन सारी बातों का जो केंद्र है, जहां से इन सबका जन्म होता है, वह विचार है। विचार को सत्योन्मुख, शिवोन्मुख और सौंदर्योन्मुख होना चाहिए। निरंतर जीवन में यह स्मरण बना रहे कि हम सत्य का चिंतन करें। समय जब मिले, तो हम सत्य पर थोड़ा विचार करें। सौंदर्य पर थोड़ा विचार करें तथा शुभ पर भी विचार करें। करने से पहले यह सोचें कि वह कार्य सत्य, सुंदर और शुभ के अनुकूल होगा या प्रतिकूल? यदि यह प्रतिकूल है, तो इस धारा को खंडित कर दें। यह जीवन को नीचे ले जाएगी। साहस, प्रयास और श्रम के साथ संकल्पपूर्वक शुभ और सत्य की ओर उन्मुख हों।
ओशो।हमारा जीवन वास्तव में एक गहन प्रयोजन है, अकारण कुछ भी नहींआत्मिक उलझन को सुलझाना ही है ध्यान, तो जानें समाधि क्या है?