दुनिया की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है।


दिल्ली के किसी व्यस्त बाज़ार में हों, टोक्यो में चौराहा पार कर रहे हों या लंदन की भूमिगत रेल में खचाखच भरी जगहों को देखकर दिमाग में सवाल उठता है कि आने वाले दशकों में क्या होगा?आने वाले दशकों में आबादी कितनी बढ़ेगी, इसका आकलन नामुमकिन सा लगता जा रहा है। अनुसंधान में जुटे वैज्ञानिक एक मुद्दे पर एकमत हैं - दुनिया भर में लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।संयुक्त राष्ट्र के जुलाई में नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक़, साल 2030 में दुनिया की आबादी आज के 7.3 अरब से बढ़कर 8.4 अरब हो जाएगी।2050 तक यह 9.7 अरब हो जाएगी और 2100 में यह आंकड़ा 11.2 अरब तक पहुंच जाएगा।नेशनल पार्क में भी ट्रैफ़िक की मार


मौजूदा समय में आबादी का अंदाजा तब होता है, जब आप न्यूयार्क सिटी में कुछ घंटे कार चला लें या फिर सैन फ्रांसिस्को में सड़क पर थोड़ा समय बिताएँ।क्या हम हर किसी को निवास के लिए जगह उपलब्ध करा पाएंगे?कहां बढ़ेगी जनसंख्या?

भविष्य में लोगों की जीवनशैली कैसी होगी, इसको लेकर विशेषज्ञों ने आकलन शुरू कर दिया है। ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि मौजूदा ट्रेंड के मुताबिक़ आने वाले दिनों में आबादी का बड़ा हिस्सा शहरों में आ जाएगा।

खेती के तौर तरीके आधुनिक होंगे, लेकिन इसमें शामिल लोगों की संख्या कम होती जाएगी।यह पहले से होता चला आया है. साल 1930 में दुनिया की महज 30 फ़ीसदी आबादी शहरों में रह रही थी, जो अब 55 फीसदी तक पहुंच गई है।महानगर का भौगोलिक दायरा भी बढ़ेगा और आबादी का घनत्व भी।संयुक्त राष्ट्र के पॉपुलेशन डिवीजन के निदेशक जॉन विलमोथ कहते हैं, "लोगों को कहीं ज्यादा घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर में ज़्यादा लोग) वाले इलाकों में रहना होगा, जैसा कि मैनहैटन में अभी दिख रहा है।"हालांकि दूसरी जगहों पर मैनहैटन जैसी सुविधा नहीं होगी। मैनहैटन में स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा के विकल्प, सांस्कृतिक अवसर, रोजगार के अवसर, आधारभूत ढांचे बेहतर स्थिति में हैं।लेकिन यह दुनिया के दूसरे शहरी हिस्सों का सच नहीं होगा, क्योंकि उन्हें शहर के तौर पर विकसित होने का मौका ही नहीं मिलेगा।बोंगार्ट के मुताबिक अफ्रीका के बड़े शहरों के साथ साथ एशियाई महानगर भी बढ़ती हुई आबादी को संभाल नहीं पाएंगे।
लागोस, ढाका और मुंबई जैसे महानगरों में ये चुनौतियां दिखने लगी हैं। कोहेन कहते हैं, "लोगों को पीने का महंगा पानी ख़रीदना होता है, हर तरफ कूड़े कचरे का अंबार दिखता है और कहीं हरियाली देखन को आंखे तरस जाती है।"विकसित देशों में भी रहन सहन का स्तर नहीं सुधरेगा। बोंगार्ट कहते हैं, "कुछ दशक तक तो तेजी से आर्थिक विकास हुआ, गरीबी कम हुई. लेकिन यह निकट भविष्य में नहीं होगा।"क्या होगी वजहें?इसकी तीन अहम वजहें हैं- पहली बात तो ये होगी कि विकसित और धनी देशों की विकास की रफ़्तार कम हो जाएगी।दूसरी अहम बात यह है कि आबादी बढ़ने का असर पर्यावरण पर पड़ेगा और उसके बुरे नतीजे लोगों को झेलने होंगे। हम खेती योग्य ज़मीन का इस्तेमाल कर चुके होंगे।नदी और भूजल का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल भी कर चुके होंगे।तीसरी अहम बात यह होगी कि असमानता हमारी सबसे बड़ी मुश्किल होगी।पिछले कुछ समय से अमरीका के मध्य वर्ग की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हुई है, लेकिन एक फ़ीसदी अमीर लोग की स्थिति पहले से बेहतर हो गई है। बोंगार्ट कहते हैं, "यह सिलसिला जारी रहेगा और इससे पर्यावरण संबंधी मुश्किलें भी पैदा होंगी।"

Posted By: Satyendra Kumar Singh