एक दशक पहले जॉर्जिया की छवि एक महाभ्रष्ट देश की थी. लेकिन राजनीतिक बदलावों से देश में उल्लेखनीय सुधार हुआ है.


भ्रष्टाचार से निपटने में शीशे की दीवारों वाले पुलिस थानों की भूमिका की बड़ी जोर शोर से चर्चा होती है. अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में ये पुलिस स्टेशन क्लिक करें भ्रष्टाचार कम करने में सफल रहे हैं? हाल के वर्षों में राजधानी क्लिक करें तिबलिसी एक आधुनिक शहर का रूप ले चुकी है और पूरे शहर में शीशे के महल जहां तहां उभर आए हैं. पहली नज़र में ये कार के शोरूम लगते हैं.लेकिन क़रीब जाने पर पता चलता है कि वे पुलिस थाने हैं. इनका मकसद पुलिस अधिकारियों को जनता के प्रति ज़्यादा जवाबदेह बनाना है.शीशे के ये थाने साल 2003 में शुरू हुई ‘रोज़ रिवोल्यूशन’ के बाद देश में पारदर्शिता लाने के किए जा रहे उपायों का प्रतीक है.छुटकारा
एक दशक पहले दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में शुमार क्लिक करें जॉर्जिया के लिए इस समस्या से छुटकारा पाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी.भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली संस्था क्लिक करें ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जॉर्जिया के मार्क मुलन कहते हैं, “यहां भ्रष्टाचार गर्व की बात मानी जाती थी.”रिश्वत देकर कोई भी काम कराया जा सकता था. घूस देकर आप किसी अच्छे विश्वविद्यालय में प्रवेश ले सकते थे, नंबर बढ़वा सकते थे, नौकरी, लाइसेंस और परमिट पा सकते थे.


साकशविली कहते हैं कि पिछली सरकार में कोई भी रिश्वत नहीं ले रहा थासाकशविली इन आरोपों से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा, “आप कह सकते हैं कि न्यायपालिका पूरी तरह स्वतंत्र नहीं थी. मैं इस बात से सहमत हूं. लेकिन कोई भी रिश्वत नहीं ले रहा था. कोई भी सरकारी पैसों की चोरी नहीं कर रहा था.”जॉर्जिया ने बहुत जल्दी बहुत कुछ हासिल किया है. इस देश के पूरे इतिहास में भ्रष्टाचार छिपाना इतना मुश्किल कभी नहीं रहा.लेकिन जॉर्जिया का उदाहरण बताता है कि शीशे के थाने अपने आप में पूरी पारदर्शिता और कानून के राज की गारंटी नहीं हैं. खासकर जब तक कि शीशे के घरों में बैठे राजनेता एकदूसरे पर पत्थर फेंक रहे हों.

Posted By: Satyendra Kumar Singh