Annapurna Jayanti: जब भगवान शिव ने धरा भिक्षु का रूप, अन्नपूर्णा जयंती की व्रत कथा व विधि
कानपुर। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय ऐसा भी आया था जब धरती पर अन्न व जल समाप्त होने लगा। इस कारण जनमानष में अफरा-तफरी मच गई और वे भगवान ब्रह्मा और विष्णु को याद करने लगे। लोगों का हाहाकार सुन ऋषियों ने उनकी वाणी भगवान विष्णु और ब्रह्मा तक पहुंचाई। फिर ब्रह्मा और विष्णु दोनों धरती वासियों की इस सम्स्या को लेकर कैलाश पर्वत पहुंचे और महादेव भगवान शिव को योग मुद्रा से जगाने लगे। तब भगवान शंकर के जागने पर ऋषियों ने उन्हें बताया कि धरती पर अन्न व जल समाप्त हो गया है, चारोओर हाहाकार मच गया है। शिव ने पार्वती से भीक्षा मांग धरती वासियों में बांटा
तत्पश्चात शिव जी बोले सब कुछ धरती पर पहले जैसा हो जाएगा आपलोग शांत हो जाएं। मान्यता है कि इतने हाहाकार के बीच भगवान शिव ने एक भिक्षु का रूप तो माता पार्वती ने अन्नपूर्णा देवी का रूप धरा था। इसके बाद दोनों साथ में धरती पर भ्रमण करने के लिए आए और भोलेनाथ ने इस दौरान माता पार्वती से भिक्षा मांग धरती वासियों में बांट दिया। इस प्रकार धरती पर सो अन्न व जल का संकट समाप्त हो गया। इसलिए आज के दिन को अन्नपूर्णा जयंती के नाम से जानते और मनाते हैं।
इस दिन पूजा करने से घर में नहीं होती अन्न की कमी मार्घशीर्ष पूर्णिमा के दिन माता पार्वती ने अन्नपूर्णा का रूप धर कर धरती वासियों को अन्न व जल संकट से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए आज के दिन घर-घर में माता अन्नपूर्णा की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से घर में अन्न व जल की कमी कभी नहीं होती है। लोग इस दिन व्रत रख कर पूरे विधि-विधान से माता अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं औॅर उन्हें फल की प्राप्ति होती है।आज है मार्गशीर्ष पूर्णिमा, यह बनाता है इस दिन को विशेष