मेरी मां कहती हैं कि उन्होंने शोले हाई स्कूल के इम्तेहान के बाद देखी थी। मुझे खुद हाईस्कूल पास किए हुए दो दशक बीत चुके हैं। मगर शोले का जादू वैसा ही है। शोले ही क्यों हिंदी सिनेमा में जिसने भी सलीम जावेद की लिखी फिल्में देखी हैं सबके अंदर एक सलीम जावेद बस सा गया है जो कभी भावुक होता है तो कहता है कि मेरे पास माँ है कभी गुस्सा आता है तो उसके मुंह से निकलता है मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता। हम सभी ने कभी न कभी तुम्हारा नाम क्या है बसंती और होली कब है जैसी चर्चित लाइनें बोली होगी।

कानपुर (इंटरनेट डेस्‍क)। सलीम जावेद हिंदी सिनेमा के ऐसे लेखक हैं, जिनके जैसा न पहले कोई हुआ, न शायद दोबारा कभी होगा। इन दोनों पर जब अमेज़न प्राइम ने डॉक्यूमेंट्री बनाई तो तमाम सिनेमा प्रेमियों को इसका बेसब्री से इंतज़ार था। फ़िल्म सलीम जावेद की जादुई कहानी पर रोशनी डालने के साथ ही अनजाने में ही ये भी बता जाती है कि सलीम जावेद की सफलता को बॉलीवुड दोहरा क्यों नहीं पाया।

सलीम खान और जावेद अख्तर के अलावा इस हिंदी डॉक्यूमेंट्री में गिने चुने मौकों पर ही कोई हिंदी बोलता दिखाई देता है। ऐसा लगता है कि एसी कमरों में बैठे इन अमीर लोगों के लिए आम लोगों का हिंदुस्तान सिर्फ उतना ही है जितना सलीम जावेद की फिल्मों में है। उसके अलावा इन्हें कुछ पता ही नहीं है।

खैर, सिनेमा प्रेमियों के लिए इसमें काफी कुछ नया है तो काफी कुछ पहले से सुना हुआ। फिर भी ये सिनेमा का शौक़ रखने वाले अंग्रेज़ी समझने वाले दर्शकों के लिए ये अच्छा सौदा है। मगर इसमें ऐसा भी कुछ नहीं है जिसे नहीं देखेंगे, तो कुछ ख़ास देखने से महरूम रह जाएंगे। हाँ फ़िल्म की एडिटिंग कमाल की है। जैसे, रणवीर सिंह आधा डायलॉग बोलते हैं और एआर रहमान की ऑस्कर स्पीच से उसे पूरा किया जाता है।