श्रीकृष्ण की कर्मभूमि द्वारिकापुरी, इनके श्राप से समुद्र में हो गई थी विलीन
संध्या टंडन। भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए केवल मथुरा-वृंदावन ही नहीं, बल्कि पश्चिम दिशा में स्थित द्वारिकापुरी भी एक पवित्र तीर्थ स्थल है। सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार इस नगरी को भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था, यह उनकी कर्मभूमि है। कृष्ण मथुरा में पैदा हुए पर वहां के लोगों को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने द्वारिकापुरी नामक सुंदर, सुव्यवस्थित और शांतिपूर्ण नगर का निर्माण किया। फिर उन्होंने पांडवों को सहारा दिया और महाभारत के युद्ध में धर्म को विजय दिलाई।
उस काल में द्वारिकापुरी भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। धार्मिक महत्ता के साथ इस नगर के साथ कई रहस्य भी जुड़े हुए हैं। भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार की समाप्ति के साथ ही पृथ्वी पर उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। ऐसी मान्यता है कि कौरवों के पिता महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को यह शाप दिया था कि जैसे मेरे कौरव कुल का नाश हो गया है, वैसे ही समस्त यदुवंश भी नष्ट हो जाएगा। इसी वजह से महाभारत युद्ध के बाद द्वारिकापुरी समुद्र में विलीन हो गई।
मंदिर से जुड़ी कथाद्वारिकापुरी स्थित मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता प्रचलित है कि मूल मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण के प्रपौत्र वज्रभान ने करवाया था। मंदिर को वर्तमान स्वरूप 16वीं शताब्दी में दिया गया था। इस मंदिर से 2 किमी. की दूरी पर रुक्मिणी देवी का मंदिर है, जिसकी स्थापत्य कला अतुलनीय है। यह मंदिर एक परकोटे से घिरा है, जिसमें चारों ओर कई द्वार हैं। इसकी उत्तर दिशा में मोक्ष-द्वार तथा दक्षिण में प्रमुख स्वर्ग-द्वार स्थित है। इस सातमंजि़ला मंदिर का शिखर 235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जिस पर करीब 84 फुट ऊंची बहुरंगी धर्म-ध्वजा फहराती रहती है।
द्वारकाधीश मंदिर के गर्भगृह में चांदी के सिंहासन पर भगवान श्रीकृष्ण की श्यामवर्णी चतुर्भुजी प्रतिमा विराजमान है, जिसमें वह अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किए हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि मथुरा में कंस के हिंसक व्यवहार से लोगों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण समस्त ग्रामवासियों और गउओं को अपने साथ लेकर द्वारिकापुरी की ओर प्रस्थान कर गए थे। इसी वजह से उनके भक्तजन उन्हें प्यार से 'रणछोड़ जी' कह कर बुलाते हैं।अन्य दर्शनीय स्थलद्वारका के आसपास स्थित अन्य दर्शनीय स्थलों में गोमती के नौ घाट, सांवलियां जी का मंदिर, गोवर्धन नाथ जी का मंदिर और संगम घाट है। इसके उत्तर में समुद्र के ऊपर एक और घाट है, जिसे चक्रतीर्थ कहा जाता है। यहां आने वाले भक्तजन भेंट द्वारिका के दर्शन करने अवश्य जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल के दर्शन किए बिना यह तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। यहां जल या सड़क मार्ग के ज़रिये आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसी तीर्थ के रास्ते में गोपी तालाब भी पड़ता है, जिसकी पीली मिट्टी को गोपी चंदन कहा जाता है।
भेंट द्वारिका ही वह पवित्र स्थल है, जहां भगवान ने अपने प्रिय भक्त नरसी को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया था। वर्षों बाद भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल-सखा सुदामा से दोबारा यहीं मिले थे। इसी वजह से इस स्थल का नाम 'भेंट द्वारिका पड़ा। इस मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र है। यहां आने वाले भक्त जन ब्राह्मणों को दान स्वरूप चावल देते हैं। रेल या वायुमार्ग से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां यात्रियों के ठहरने के लिए आरामदेह धर्मशालाएं और होटल मौज़ूद हैं। आने वाले पर्यटक अपने साथ शंख और सीपियों से बने आभूषण ज़रूर ले जाते हैं। समुद्र तट से निकट होने के कारण जून में यहां का मौसम सुहावना हो जाता है और आप इस पावन तीर्थ की यात्रा का भरपूर आनंद उठा सकते हैं।