आजकल अधिकांश कंपनियां सैलरी देने के साथ अपने कर्मचारियों को सैलरी स्‍िलप भी देती हैं। ऐसे में अगर आपकी कंपनी सैलरी स्‍िलप नही दे रही है तो आप उसकी मांग करिए क्‍योंकि यह बहुत काम की होती है। इसमें कंपनी और आपके बीच की हर एक बात मेंशन होती है। इसके अलावा जॉब चेंज करने से लेकर इंक्रीमेंट तक में यह खास रोल प्‍ले करती है। ऐसे में आइए आज जानें सैलरी स्लिप के बारे में सबकुछ...


बेसिक सैलेरी:सैलरी स्लिप में सबसे ऊपर इसका रिकॉर्ड होता है। बेसिक सैलेरी पूरी सैलेरी की 40 से 45 परसेंट होती है। इस पर 100 परसेंट टैक्स देना पड़ता है।  हाउस रेंट एलाउंस: इसे शॉर्ट कट में एचआरए के नाम से भी बुलाते हैं। मेट्रो सिटी में रहने वाले को बेसिक सैलेरी का 50 एलाउंस और दूसरे शहरों में 40 परसेंट मिलता है। कन्वेंस एलाउंस: कंपनी जिन कर्मचारियों को आफिस आने जाने के लिए जो एलाउंस देती, उसे कन्वेंस एलाउंस बोलते हैं। 1600 तक की रकम में टैक्स नहीं होता है। लीव ट्रेवल एलाउंस: इसमें साल की कुछ छुट्टियों का खर्चा कंपनी देती है। हालांकि इसमें आने जाने के खर्च के अलावा कोई और खर्च नहीं होता। ये भी सैलरी का एक पार्ट होता है। मेडिकल एलाउंस:
यह एलाउंस दुघर्टना व बीमारी में मिलता है। मेडिकल कवर में 15000 तक की रकम टैक्स फ्री होती है। इसमें दवा व अस्पताल के बिल पर भुगतान होता है। स्पेशल अलाउंस:यह परफॉर्मेंस बोनस के रूप में मिलता है। जिससे कर्मचारी प्रोत्साहित होते हैं। हर कंपनी में अलग पॉलिसी होती है। किसी में टैक्सेबल तो किसी में फ्री होता है। पीएफ:


हर जगह पीएफ बेसिक सैलेरी का 12 परसेंट कटता है। जितनी राशि सैलरी से कटती उतनी ही कंपनी अपनी तरफ से कर्मचारियों के खाते में जमा करती है।प्रोफेशनल टैक्स:यह टैक्स पूरी सैलरी पर कटता है। यह सिर्फ केरल, मेघालय, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, बिहार, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और गुजरात में ही लागू है। सीटीसी:इसका मतलब कॉस्ट टू कंपनी होता है। इसमें कंपनी जो एलाउंस या पीएफ एमाउंट आपको अपनी तरफ से देती हैं वह सब इसी से काटती है।

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Posted By: Shweta Mishra