सोचिए कि आप बस या मेट्रो में बैठे हैं और आपके बगल में कोई पैर फैलाकर बैठ जाता है। आपको कैसा महसूस होगा? जाहिर है यह काफी असुविधाजनक और असहज महसूस कराने वाला होता है।

आम तौर पर पुरुषों को इस तरह टांगें पसारकर बैठे हुए देखा जाता है। वहीं महिलाएं अक्सर पैर मोड़कर या सिकुड़कर बैठती हैं। ऐसे में उनके लिए यह काफी असुविधाजनक होता है। लेकिन चूंकि यह आदत एक चलन जैसी बन गई है इसलिए इसे नज़रअंदाज कर दिया जाता है।

स्पेन की राजधानी में महिलाओं ने इस आदत पर लगाम लगाने की ठान ली है। वहां परिवहन विभाग ने उन पुरुष यात्रियों के ख़िलाफ़ ख़ास अभियान चलाया है जो सीट पर पैर फैलाकर बैठते हैं।


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फ़ेसबुक पर नूपुर सक्सेना ने कहा,'' समस्या होती ही है। मगर यहां इसे पुरुषों के साथ नहीं बल्कि आपके साथ ही समस्या बता दिया जाएगा।''

इंस्टाग्राम पर लावण्या कहती हैं, ''भारत में भी यह अभियान शुरू किया जाना चाहिए।''

सांझ ने कहा,''बिल्कुल होती है। देखने में किसी तरह सभ्य नहीं लगता।'' रीना श्रीवास्तव ने कहा,''किसी भी महिला के लिए ऐसे पुरुष के बगल में बैठना बहुत असुविधाजनकर होता है। पुरुषों को बैठना सीखना चाहिए।''

अपरिचित व्यक्ति नाम के फ़ेसबुक यूज़र ने कहा,''जी हां, ख़ासकर बस में सफर के वक्त काफी दिक्कत होती है।'' मोहम्मद इरफ़ान लिखते हैं,''हां, कुछ लोगों को बैठने की भी तमीज नहीं होती।''

मनीष दीक्षित को लगता है कि यह बैठने का ग़लत तरीका है और इससे महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी दिक्कत होती है। संतोष कुमार कहते हैं,''अगर जगह कम है तो नहीं बैठना चाहिए। अगर जगह है तो पैर फैलाकर ही बैठना चाहिए।''

चंदन कुमार का मानना है कि इसके पीछे पुरुषों की शारीरिक बनावट भी जिम्मेदार है। उन्हें टांग पर टांग चढ़ाकर बैठने में दिक्कत होती है। मैनस्प्रेडिंग शब्द को दो साल पहले ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में शामिल किया गया था।


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Posted By: Chandramohan Mishra