अफ़ग़ानिस्तान: आला जनरल ने दी ख़तरे की चेतावनी
अमरीका ने इस समझौते पर हस्ताक्षर के लिए अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई को इस वर्ष 31 दिसम्बर तक का समय दिया है. समझौते के मुताबिक़, अमरीकी सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान में वर्ष 2014 के बाद तक रुकना है.लेकिन करज़ई अगले वर्ष अपने पदभार से मुक्त होने वाले हैं और तब तक दस्तख़त के लिए रुकना चाहते हैं.करज़ई के इस रुख़ से एकदम उलट, वरिष्ठ सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल मुराद अली मुराद ने बीबीसी से कहा है कि अमरीका के समर्थन के बिना उनकी फ़ौज को काफ़ी जूझना पड़ेगा.मौजूदा स्थिति ये है कि अफ़ग़ानिस्तान में तैनात नैटो के नेतृत्व वाले ज़्यादातर सैनिकों को अगले वर्ष यहां से चले जाना है क्योंकि ये घोषणा कर दी गई है कि जंगी मुहिम ख़त्म हो चुकी है.
बहरहाल, अमरीका के साथ जिस समझौते पर दस्तख़त की बात की जा रही है, उसके मुताबिक़, 15,000 विदेशी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में रुक सकते हैं जो अफ़ग़ान फ़ौज के लिए प्रशिक्षक की भूमिका निभाएंगे, लेकिन साथ ही चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को अंजाम देंगे.कई महीनों तक चली बातचीत के बाद, इस समझौते को आधिकारिक तौर पर द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता नाम दिया गया, जिसका राजधानी काबुल में पिछले महीने हुई कबाइली बैठक लोया जिरगा में अनुमोदन भी कर दिया गया है.
तालिबान को साल 2001 में सत्ता से अपदस्थ किए जाने के बाद राष्ट्रपति बने हामिद करज़ई का ये दूसरा कार्यकाल है जो अगले वर्ष अप्रैल में पूरा हो रहा है.चुनौतियों और समस्याओं का हवाला
काबुल स्थित बीबीसी संवाददाता केरन एलन का कहना है कि पहली नज़र में ये पूरा मामला महज राजनयिक तकरार जैसा लग सकता है लेकिन अफ़ग़ान फ़ौज के वरिष्ठ कमांडरों ने अमरीका के साथ समझौते पर दस्तख़त जल्द नहीं होने पर संभावित परिणामों के बारे में स्पष्ट रूप से कह दिया है.एक ओर राष्ट्रपति करज़ई जहां कह रहे हैं कि वो समझौते पर दस्तख़त के लिए अमरीका द्वारा तय समय-सीमा का पालन नहीं करेंगे, वहीं देश के भीतर आवाज़ें मुखर होती जा रही हैं कि इस समझौते पर जल्द से जल्द दस्तख़त कर देने चाहिए.