बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने जमात-ए-इस्लामी के एक नेता को पाकिस्तान के साथ 1971 में हुए युद्ध के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराध के लिए फ़ांसी की सज़ा सुनाई है.


जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल क़ादर मुल्ला ने सभी आरोपों से इनकार किया है. उन्हें इस साल फ़रवरी में उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई थी.इसके ख़िलाफ़ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. अदालत ने उनकी उम्रकैद की सज़ा को बढ़ाकर फ़ांसी की सज़ा में बदल दी.अधाकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ 1971 के युद्ध में 30 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी.विरोध की लहरअब्दुल क़ादर मुल्ला पर चले मुक़दमें के ख़िलाफ़ देश में विरोध की लहर पैदा हो गई थी. उनके समर्थकों ने आरोप लगाया था कि सरकार एक पुश्तैनी झगड़े को आगे बढ़ा रही है.इस साल फ़रवरी में बांग्लादेश के एक युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने मुल्ला को हत्या समते छह में से पांच आरोपों में दोषी ठहराया था.
उन पर जो आरोप लगाए गए थे, उनमें ढाका के मीरपुर में हुआ नरसंहार भी शामिल है. इसके पीछे मुल्ला का हाथ बताया गया था.इस नरसंहार के बाद मुल्ला को 'कोसाई' या कसाई का उपनाम मिला था.बचाव पक्ष के वकील ताज़ुल इस्लाम ने एजेंसी से कहा कि वे फ़ैसला सुनकर दंग रह गए.


उन्होंने कहा, '' दक्षिण एशिया के न्यायिक इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि निचली अदालत के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ा दिया है.''बांग्लादेश की वर्तमान सरकार ने इस विशेष अदालत का गठन 2010 में किया था.इसका मकसद पूर्वी बंगाल को अलग देश बनाने के लिए 1971 में हुए मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान की मदद करने वालों लोगों पर मुक़दमा चलाना था.बांग्लादेश सरकार के मुताबिक़ मुक्ति संग्राम के दौरान 30 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई थी.वहीं कुछ स्वतंत्र शोधकर्ताओं का कहना है कि मरने वालों का आंकड़ा तीन से पांच लाख के बीच है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh