एक मुट्ठी चावल से खुला बैंक, आज करोड़ों में है कारोबार
ऐसे शुरु की संस्थाउत्तर प्रदेश में वाराणसी के शंकरपुर गांव में माधुरी सिंह ने 1997-98 में परिवार नियोजन का काम शुरु किया था। माधुरी ने बताया कि मैं जब परिवार नियोजन के काम के लिए महिलाओं के बीच गई तो पता चला कि गांव की महिलाएं 500 से 5000 रुपये तक के कर्ज में डूबी हुई हैं। साहूकार महिलाओं से 10 फीसदी की दर से ब्याज लेते। एक ऐसी ही महिला मुझे मिली जिसने महाजन से प्रसव के लिए 500 रुपये का कर्ज लिया था। वह महिला अगले 7 साल तक मूल रकम ही नहीं चुका पाई। कर्ज में डूबी महिलाओं से मिला हौसला
महिला का 500 रुपये का कर्ज करीब 7 हजार रुपये से अधिक पहुंच गया। माधुरी ने उसी गांव की 10-12 महिलाओं को इकट्ठा किया और सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाया। हफ्ते में 5 रुपये जमा करने को कहा। महिलाएं इतनी गरीब थीं कि उनसे पास 5 रुपये तक नहीं जुट पाते थे। तब माधुरी ने कहा कि रोज खाना बनाते वक्त एक मुट्ठी चावल कम बनाए और एक आलू को बचा ले। इस तरह से 7वें दिन उस बचे हुए चावल और आलू का इस्तेमाल करें और हफ्ते में एक दिन का आलू और चावल का पैसा बचने लगा। 5 रुपये से इस रकम को बढ़ाकर 20 रुपये किया गया। इस कर्ज का इस्तेमाल महिलाएं पशुपालन, मुर्गी पालन, खेती, बागवानी के काम में करती और आर्थिक तौर पर सशक्त होती गईं।
सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़े लोगों की बस्तियों में बाल मजदूरी नहीं है। बच्चों और गर्भवती महिलाओं का 100 फीसदी टीकाकरण है। सेल्फ हेल्प ग्रुप न केवल लोगों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करता है बल्कि राजनीतिक और समाजिक सशक्तिकरण के भी काम करता है। माधुरी सिंह की इस सफलता ने बैंकों को भी ऋण देने और स्वरोजगार को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। इन समूहों की मदद और प्रमोशन के लिए नाबार्ड बैंक आगे आया है। समूहों को ऋण के लिए अन्य बैंक भी समर्थन करते हैं। समूह के डेढ़ साल या दो साल हो जाने पर समूह या फिर उसके सदस्यों को बैंक लोन देता है। महिलाओं को रोजगार के लिये दिया जाता है लोनयूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने एक सौ सेल्फ हेल्प ग्रुप या फिर उसके सदस्यों को ढाई करोड़ रुपये का लोन दिया है। वाराणसी के लेढ़ुपुर में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के शाखा प्रबंधक अवनीश झा बताते हैं कि 2013 में शाखा खुलने के बाद से ही महिलाओं को भूमिहीन क्रेडिट कार्ड पर लोन दिया जा रहा है। यूनियन बैंक के ट्रेनिंग सेंटर में सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती हैं। यह ट्रेनिंग खेती-बाड़ी और अन्य स्वरोजगार से जुड़ी होती हैं। उसके बाद उनकी निजी क्षमता को देखते हुए लोन दिया जाता है।
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