एक बार महान लेखक टॉल्स्टाय बहुत साधारण से कपड़े पहने स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे। एक स्त्री ने उन्हें कुली समझा और बुलाकर कहा 'ये पत्र लेकर सामने के होटल में मेरे पति को दे आओ। मैं तुम्हें दो रूबल दूंगी।'

 

 

एक बार महान लेखक टॉल्स्टाय बहुत साधारण से कपड़े पहने स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे। एक स्त्री ने उन्हें कुली समझा और बुलाकर कहा, 'ये पत्र लेकर सामने के होटल में मेरे पति को दे आओ। मैं तुम्हें दो रूबल दूंगी।' 

टॉल्स्टाय ने वह पत्र पहुंचा दिया और उन्होंने दो रूबल लिए ही थे कि महिला का एक मित्र वहां आ पहुंचा और उसने मान्यवर कहकर उनका अभिवादन किया। यह सुन उस स्त्री को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने उस नवागंतुक से पूछा, 'यह कौन हैं?' 

टॉल्स्टाय का परिचय प्राप्तकर वह महिला बेहद लज्जित हुई और उसने क्षमा मांगते हुए अपने रूबल वापस मांगे। इस पर टॉल्स्टाय हंसते हुए बोले, 'देवीजी, क्षमा करना तो परमात्मा का काम है। मैंने काम करके पैसे लिए हैं। अपनी मेहनत की कमाई क्यों लौटाऊं? 

कथासार : व्यक्तित्व की पहचान कपड़ों से नहीं, व्यक्ति के कर्म और विचारों से होती है।

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Posted By: Vandana Sharma