वाल्मीकि ब्राह्मण थे या फिर ओबीसी?
इस महाकवि की जाति का पता लगाने के लिए राज्य सरकार ने 14 सदस्यों की एक कमेटी गठित कर दी है।संस्कृत में 'रामायण' लिखने वाले वाल्मीकि को ब्राह्मण बताने वाली एक किताब पर राज्य सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।इसके बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर इस कमेटी का गठन किया गया है।लेकिन इस विवाद ने एक नया रूप इसलिए लिया है कि कुछ कन्नड़ लेखक इसे पिछड़े वर्गों से संबंधित महापुरुषों को ‘समाहित करने’ की कोशिश के रूप में देखते हैं।पढ़ें विस्तार से
उनके मुताबिक़, “वाल्मीकि एक राष्ट्रीय कवि थे। वे एक महान कवि थे, जिन्होंने देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष को अपनी रचना में जगह दी। हम इसकी व्याख्या कर सकते हैं और इसके सहारे हम आज के समाज के बारे में एक समझ बना सकते हैं।”घांटी के अनुसार, “वाल्मीकि ने अपने समय की सामाजिक तस्वीर खींची है। मुझे नहीं लगता कि उस संदर्भ में, आज के दौर में उनके जन्म पर विचार करना वैज्ञानिक होगा।”लेकिन दलित लेखक इंदुधारा होन्नापुरा का इस मामले को देखने का नज़रिए दूसरा है।
होन्नापुरा ने कहा, “यह कहना मूर्खता है कि वाल्मीकि ने ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था। इसके बारे में वाल्मीकि ने रामायण में खुद लिखा है। यहां तक कि बासवाना ने वाल्मीकि के जन्म के बारे में लिखा है। लेकिन इस विवाद का कुछ और ही मतलब है।”उनके मुताबिक़, सभी महापुरुषों को ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने का दावा करना, "साम्प्रदायिक समूहों का छिपा एजेंडा” है।कन्नड़ कवि और नाटककार प्रोफ़ेसर केवाई नारायणस्वामी होन्नापुरा से सहमति जताते हैं। वे सांस्कृतिक इतिहास में इसे एक चलन के रूप में देखते हैं।राजनीतिक एजेंडा?
उनके मुताबिक़, “ग़रीब समुदायों से आने वाले महापुरुषों को अपने में मिला लेने की कोशिश का एक साफ चलन दिखाई देता है। यह मुद्दा दक्षिणपंथी दलों के राजनीतिक एजेंडे का एक हिस्सा है।”हाई कोर्ट के निर्देश पर बनी कमेटी दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। उसके बाद ही इस विवाद पर कोई नया मोड़ आएगा।