शबाना आदम अजमेरी अहमदाबाद के दरियापुर इलाक़े की एक म्युनिसिपल स्कूल में छठी क्लास की छात्रा हैं. जहां देश और उसकी क्लास के बच्चे डॉक्टर इंजीनियर उद्यमी या सीए बनने के सपने देखते हैं वहीं शबाना वकील बनना चाहती है.


यह पूछने पर क्यों.... वह चुप हो जाती है. कुछ पल बाद अपने पिता की ओर देखती हैं और फिर रोने लगती हैं.उसकी मां नसीम बानो कहती हैं, "इसका बचपन क़ानून, पुलिस और वकीलों के क़िस्से सुनकर बीता है. बस तभी से यह कहती है कि यह वकील बनेगी और हम सबको बचाएगी."शबाना के पिता आदम सुलेमान अजमेरी 11 साल जेल में रहने के बाद 17 मई, 2014 को बाहर आए हैं. उन पर अक्षरधाम मंदिर हमले में शामिल चरमपंथियों का साथ देने का आरोप था और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन एक दशक तक जेल में रहने के बाद  सुप्रीम कोर्ट ने उन पर लगे सभी आरोप ख़ारिज कर दिए और उन्हें बाइज़्ज़त रिहा कर दिया.
24 सितंबर, 2002 को दो हमलावरों ने अक्षरधाम मंदिर के भीतर एके-56 राइफल से गोलियां बरसाकर 30 लोगों की हत्या कर दी थी और क़रीब 80 को घायल कर दिया था.इस मामले में आठ लोगों को गिरफ़्तार किया गया था जिनमें से छह को आरोपमुक्त कर दिया गया है जबकि दो पर अभी मुकदमा चल रहा है.'ग़ैरक़ानूनी हिरासत और प्रताड़ना'


8 अगस्त, 2003 को रात के क़रीब डेढ़ बजे आदम अजमेरी अपने भाई के ऑटो गैराज के नज़दीक दोस्तों के साथ बातचीत कर रहे थे तभी एक मारुति ज़ेन कार, जिसमें चार लोग सवार थे, उनके सामने आकर रुकी.गाड़ी में से एक आदमी बाहर आया और पूछा, "तुम से आदम कौन है? तुम्हें बड़े साहब ने बुलाया है."मैं समझा नहीं कि कौन साहब. फिर वह बोला बड़े साहब ने क्राइम ब्रांच बुलाया है.

अजमेरी के अनुसार, "कोर्ट ले जाने के दिन पहले मुझे धमकाया गया कि मैंने अगर कोर्ट में मुंह खोला या वकील करने की कोशिश की तो मेरे परिवार को मार देंगे. फिर मेरी बीवी और बच्चों को सीसीटीवी कैमरे में क्राइम ब्रांच में बैठे हुए दिखाया गया. मुझे कहा गया कि जहां कहा जाए हस्ताक्षर कर देना वरना कोर्ट से लौटते वक़्त रास्ते में कहीं भी गोली मार देंगे."वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी ने सुप्रीम कोर्ट में अजमेरी का पक्ष रखा था. वह कहते हैं, "अजमेरी को रिहा करने वाली दो सदस्यीय पीठ ने माना कि उनका अपराध की स्वीकारोक्ति वाला बयान स्वेच्छा से नहीं दिया गया था और पुलिस ने बदमाशी की है."दस बाई दस के एक कमरे में अपनी बीवी और पांच बच्चों के साथ रह रहे आदमभाई अब खुश हैं, लेकिन अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान हैं.


कहते हैं, "11 साल जेल में आतंकवादी बनकर जिस कोठरी में रहा, वह इस घर से बड़ी थी लेकिन वहां मैं एक ज़िंदा लाश था और सिर्फ़ इस उम्मीद पर ज़िंदा था कि जिस देश का मैं नागरिक हूं, उसका क़ानून पूरी तरह अंधा नहीं है और मुझे इन्साफ मिलेगा."अजमेरी बताते हैं, "इस केस ने मेरे और मेरी बीवी से ज़्यादा मेरे बच्चों का जीवन बर्बाद कर दिया. पुलिस के मुझे पकड़कर ले जाने के बाद मेरी बीवी के तो पांव तले ज़मीन ख़िसक गई. छह बच्चे (एक बेटी की अब शादी हो चुकी है), एक कमाने वाला और वह भी जेल में. मेरी बीवी और बच्चों ने ये 11 साल रो-रो कर निकाले हैं.""बच्चों का स्कूल छूट गया. अखबारों में बड़े-बड़े फ़ोटो छपे थे मेरे, जिसके बाद बच्चों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया, क्योंकि वे लोगों से नज़रें नहीं मिला पाते थे और आख़िर कितनों को कहते कि अब्बू बेकसूर हैं."
उन्होंने कहा, "मैं इनसे कहता था कि मैं नहीं पढ़ पाया क्योंकि हमारे अब्बू के पास पैसे नहीं थे और यह अब अपने बच्चों से कहेंगे कि हम नहीं पढ़ पाए, क्योंकि इनके अब्बू आंतकवाद के झूठे केस में जेल में थे. अब में खुले आसमान के नीचे हूं लेकिन जेल की ज़िन्दगी और 11 साल पहले पड़ी मार नहीं भूल पाता,""मुझे हर पल लगता है कि मेरी आँखों के सामने अब भी सलाखें और जाली हैं. और इधर बाहर दुनिया इतनी बदल गई है कि मानो मैं 11 साल नहीं, 1100 साल बाद बाहर आया हूं."बददुआअजमेरी अपने से मिलने आए लोगों को अब भी अपना पूरा नाम बताने से पहले अपना कैदी नंबर बोल जाते हैं. कहते हैं, "मैं ही जानता हूं कि जेल के अंदर ज़िंदगी कैसे बसर हुई. क्या था मेरा कसूर? मैं भी इस मुल्क का एक नागरिक हूँ, जितना हर हिंदुस्तानी को होता है, उतना ही गर्व है मुझे इस पर."यह पूछे जाने पर कि उन्हें क्या लगता है कि उन पर ही मामला क्यों दर्ज किया गया?अजमेरी कहते हैं कि उन्होंने 1998 में बीजेपी पर चुनाव के दौरान धांधली का आरोप लगाया था और कोर्ट में याचिका भी दायर की थी शायद इसका संबंध उसी से है.
वह कहते हैं, "कांग्रेस जीते या बीजेपी इससे मुझे कोई मतलब नहीं था, लेकिन जब मैंने अपने इलाक़े में बैलेट पेपर की धांधली होते देखी तो रिटर्निंग अफ़सर को शिकायत की और कोर्ट में एप्लीकेशन भी लगाई, लेकिन उस मामले में कुछ हुआ नहीं. मुझे लगता है तबसे मैं पुलिस के नज़र में था. बहरहाल कुछ भी हो मेरी ज़िन्दगी तबाह करने वालों को मेरे बच्चों और बीवी की आह ज़रूर लगेगी."अजमेरी और अन्य कई आरोपियों को पोटा में अंदर करने वाले और फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सज़ा काट रहे वंजारा भी उसी जेल में थे, जहां अजमेरी को रखा गया था.वह कहते हैं आज भी जब उनका या घर के किसी भी सदस्य का दुआ के लिए हाथ उठता है तो वे  वंजारा के जेल में रहने की दुआ करते हैं.अपने आंसू पोंछते हुए अजमेरी कहते हैं, "बददुआ तो वंज़ारा को लगी है और हम दुआ कर रहे हैं कि वह कभी बाहर न आएं. मेरी बूढ़ी माँ मेरे इंतज़ार में अल्लाह को प्यारी हो गई. खून के आंसू रोए हैं हम सब."

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari