रिश्‍ते दिल के होते हैं या दिमाग के अभी इस पर बहस थमी नहीं या पूरी भी नहीं हुई कि ये सवाल उठ खड़े हुए हैं कि क्‍या रिश्‍तो का कानून भी होता है। हालिया दौर में जिस तरह स्‍त्री पुरुष के निजी और अंतरंग रिश्‍तों में कानून का इंटपिटेशन शामिल हुआ है वो इसे दिल और दिमाग से परे कहीं बेहद दैहिक या कैलकुलेटिव मोड़ पर तो नहीं ले आया। इस पर लंबी बहस चल सकती है पर हम यहां सिर्फ आपके सामने रख रहे हैं रिश्‍तों में कानून के पहलू या उनके फैसले। वो सही गलत हैं इस पर र्निणय और विचार आपको करना है।

रिश्ते में अपने सम्मान को बचाना औरत का दायित्व
जी रिश्ता भले ही औरत और मर्द दोनों के बीच बनता हो पर उसके अंदर मर्यादा का दायित्व सिर्फ औरत का है। ये बात हम नहीं कह रहे हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट कह रही है। हम इसमें कहे गये तथ्यों की विवेचना भी नहीं कर रहे फैक्ट सामने रख रहे हैं। फिजिकल इनवाल्वमेंट दो लोगों का होता है, दैहिक जरूरतें भी दो लोगों की होती है और रिश्ता भी दो लोगों के बीच बनता है और रिश्ता टूटता भी दो लोगों के बीच है। पर देह समर्पण के बाद टूटे रिश्ते में आहत मर्यादा को संभालने का दायित्व सिर्फ एक का है महिला का क्योंकि उसकी गलती है कि उसने देह सौंपी, अपनी जरूरतों को सामने वाले की जरूरतों में शामिल कर दिया। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का यही कहना है कि शादीशुदा पुरुष से दैहिक संबंध बनाना महिला की गलती थी उसे अपनी रक्षा करनी चाहिए थी।
गुजारा भत्ता चाहिए तो यौन अनुशासन का पालन करे महिला
बात अब भी वही है अगर एक तलाकशुदा पत्नी अपने लिए गुजारा भत्ता चाहती है तो तलाक के बाद शादी खत्म होने पर भी उसे किसी दूसरे पुरुश से संबंध नहीं बनाने हैं क्योंकि जब देह सौंप दी तो पूर्व पति खर्चा क्यों दे वही दे ना जिसे देह दी है। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरई बैंच तो यही कह रही है उसका कहना है कि तलाक के बावजूद स्त्री के दूसरे पुरुष से संबंध व्यभिचार हैं और उसे गुजाराभत्ता मांगने का हक नहीं। कहने का मतलब जो रिश्ता रहा ही नहीं उसमें भी निष्ठा रखनी पड़ेगी। हालाकि इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि धारा 125 (4) तभी तक लागू हो सकती है जब तक शादी बची हुई हो।

लिव इन में भी मिलेगा गुजार भत्ता
अब बिलकुल अलग मामला जहां शादी, तलाक और रिश्तों के मामले कोर्ट का एक नजरिया है वहीं लिव इन रिलेशनशिप के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक अलग ही रुख है उसकी हालिया रूलिंग के मुताबिक अगर महिला और पुरुष बगैर शादी के लिव इन में बतौर पति पत्नि रह रहे हैं तो संबंध खत्म होने के बाद स्त्री गुजारे भत्ते की हकदार है। यानि यदि उनके लंबे समय तक एक दूसरे से पति पत्नी की तरह प्रमाणित तौर पर शारीरिक संबंध हैं तो महिला को गुजारा भत्ता देना पुरुष का दायित्व होगा।
विवाह संबंध में बिना मर्जी के दैहिक संबंध बलात्कार हैं या नहीं?
शादी में अगर महिला की इच्छा के बिना जबरदस्ती दैहिक संबंध बनाये जाते हैं तो उन्हें रेप की कैटेगरी में रखा जाएगा या नहीं इस पर इन दिनों बहस जारी है जहां एक पक्ष का कहना है की भारतीय परिवेश में ऐसा कानून बनाना सही नहीं है क्योंकि हमारे देश में पारिवारिक माहौल बिलकुल अलग है यहां शादी के बाद और शादी में ही दैहिक संबंधों को जायज माना जाता है ऐसे में पुरुष अपनी इच्छा पूर्ती के लिए कोई और तरीका नहीं ढूंढ सकते तो कई बार पत्नी की इच्छा की अनदेखी भी कर देते हैं। जबकि इस को अपराध माने वालों का तर्क है कि जब 18 साल से कम उम्र की 1लड़की के साथ उसकी इच्छा या अनिच्छा से यदि कोई व्यक्ति संबंध बनाता है, तो वह अपराधी माना जाता है, लेकिन अगर लड़की विवाहित है और उसकी आयु 15 वर्ष के करीब भी है तो जबरन संबंध बनाने की स्थिति में भी पति को अपराधी नहीं माना जाएगा। क्या विवाहित होने से स्त्री का अपनी देह पर अधिकार समाप्त हो जाता है? इस मामले पर बहस जारी है और कभी किसी मामले इसे अपराध माना गया है और किसी में नहीं ये अक्सर घटना की परिस्थियों पर ही र्निभर करता रहा है। 

कमाऊ तलाकशुदा को गुजारा भत्ता नहीं
जी चलते चलते एक और मील का पत्थर रिश्तों के कानून में हालाकि इसे स्थापित किया है एक मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने, जब एक याचिका खारिज करते हुए इस कोर्ट ने कहा कि आज महिलाएं इतनी सक्षम हैं कि उन्हें खुद कमाना चाहिए न कि पति से गुजारा भत्ता लें। पहली बार आए इस अनोखे फैसले में मेट्रोपोलिटन कोर्ट कहा कि जब हुनर है तो खुद कमाओ पैसा कोर्ट का कहना है कि गुजारे भत्ते का दावा करने वाली महिला ने खुद यह स्वीकार किया है कि उसने ब्यूटीशियन का कोर्स किया है। इसका मतलब यह है कि उसके पास काम करने और पैसा कमाने का हुनर है लेकिन वो काम करना नहीं चाहती। कोर्ट ने पूछा कि वो काम क्यों नहीं करना चाहती इसका कोई उचित कारण नहीं बता सकी जबकि आधुनिक महिलाएं से घर में आर्थिक मदद की उम्मीद की जाती है। ऐसे में शिकायतकर्ता के पक्ष में वित्तींय गुजारे का फैसला नहीं दिया जा सकता।
अब हमने तो आपको कानून की तहरीरों में बयान किए गए रिश्तों के सच आपको बता दिए हैं लेकिन आप इनसे सहमत हैं असहमत या कुछ नया ही समझते हैं ये तय करना आपका काम हैं। पर ये जरूर याद रखें कि रिश्ते दिल से बनायें और दिमाग से संभालें तो शायद कानून को दखल देने का मौका ना मिले।

 

Posted By: Molly Seth