भारत में ऐसे कई मंदिर है जिनके चमत्कार को देख कर लोग चौक जाते हैं। जिसके चलते इन मंदिरो में भक्तो की भीड़ लग जाती है यहाँ कोई ना कोई चमत्‍कार होता रहता है लेकिन आज में आपको पांच ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लोग भूत भगाने के लिए जाते हैं। इन मंदिरों में भूत प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इन मंदिरों की महिमा भी अनोखी है।


मलाजपुर मंदिरमध्य प्रदेश के बैतूल जिले में हर साल श्राद्ध पक्ष की अमावस्या की रात नर्मदा किनारे भूतों का मेला लगता है। इस मेले को शौकिया देखने पहुंचने वाले लोगों के डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मलाजपुर के बाबा के समाधि स्थल के आसपास के पेड़ों की झुकी डालियां उलटे लटके भूत-प्रेत की याद ताजा करवा देती हैं। माना जाता है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोड़ने के बाद उसके शरीर के अंदर से प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के किसी भी पेड़ पर उलटा लटक जाता है।भानगढ़ का मंदिर


भानगढ़ महल के अंदर एक विशाल मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर अपनी अजीबो-गरीब कहानियों के लिए कुख्यात है। यहां कहानियां प्रचलित हैं कि इस महल में रहने वाली रानी से एक तांत्रिक बहुत प्रेम करता था। जब रानी ने उसके प्रेम को इंकार किया तो तांत्रिक ने पूरे महल को बदल दिया। आज भी महल में इत्र की खुशबू आती है। मंदिर में कोई पूजन नही करता है पर वहां हमेशा फूल होते हैं। बैतूल का मंदिर

बैतूल में स्थित इस मंदिर की भी अपनी अनोखी कहानियां हैं। अमावस्या और पूर्णिमा की रात को यहां भूतों को भगाने की रस्म निभाई जाती है। जिन लोगों के शरीर में आत्माओं का वास होता है वो यहां आते हैं। यहां लोगों को खंभों से बांध दिया जाता है। बालाजी महराजबालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान भैरव की मूर्तियां भी हैं। प्रेतराज सरकार जहां दंडाधिकारी के पद पर आसीन हैं। वहीं, भैरव जी कोतवाल के पद पर। यहां आने पर ही मालूम चलता है कि भूत और प्रेत किस तरह से मनुष्य को परेशान करते हैं। दुखी व्यक्ति मंदिर में आकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है। बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान भैरव को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं। शारदा माता मंदिर

मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। अल्हा और उदल शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं।

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Posted By: Prabha Punj Mishra